लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> नदी के द्वीप

नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :462
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

390 पाठक हैं

व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।

9


क्यों सब-कुछ का अर्थ है-दूसरा, गहरा अर्थ? ऐसा ही रहा, तो और एक-आध दिन में हर स्थान का, हर दृश्य का, हर बात का एक गहनतर, गोपनतम अर्थ हो जाएगा, एक रागात्मक ऐश्वर्य-तब रेखा किसी ओर मुड़ नहीं सकेगी बिना उस अर्थ से अभिसिंचित हुए...भुवन पूछता है, “पहाड़ पर चलोगी?” तो वह सिहर उठती है, “ठण्ड तो नहीं लगती?” तो लजा जाती है, “आओ, बैठें” तो मानो उसके घुटने मोम हो जाते हैं...लेकिन ऐसा रहेगा नहीं, और एक दिन भी नहीं, यह दोपहर ढलेगी तो जो रात होगी, उसके बाद जो सवेरा होगा...।

तीसरे पहर फिर घूमने पहाड़ पर जाने की बात थी, शायद उस पार तक, पर दो-पहर की संक्षिप्त नींद से उठकर उन्होंने देखा, बादल का एक बड़ा-सा सफेद साँप झील के एक किनारे से उमड़ कर आ रहा है, और उसकी बेडौल गुँजलक धीरे-धीरे सारी झील पर फैली जा रही है, थोड़ी देर में वह सारी झील पर छाकर बैठ जाएगा, और फिर शायद उसका फन ऊपर पहाड़ की ओर बढ़ेगा।

भुवन ने कहा, “शायद बारिश हो, नहीं जाएँगे।”

तम्बू के सामने के चँदोवे में, नीचे पटरे डालकर उन पर कुछ बिछा कर दोनों बैठ रहे, देखते रहे बादल को धीरे-धीरे झील पर छाते हुए। जब वह घाटी में उमड़ कर आया, तब उसका बड़ा स्पष्ट आकार था, पर झील की सतह को दुलराता हुआ...।

“देखते हो, बादल कैसे झील को दुलराता है।”

ओफ़, ये गहनतर अर्थ... रेखा की छाती में गुदगुदी होने लगती है, वह चाहती है कि भुवन का सिर खींच कर वहाँ छिपा ले, भुवन के ओठों को भींच ले कुचों के बीच जहाँ उसने दो दिन पहले पहली बार चूमा था...लेकिन वह निश्चल बैठी है, बिल्कुल निश्चल, भुवन का ही हाथ उसका हाथ खोजता आता है और उस पर टिक जाता है, बहुत धीरे-धीरे उसे दुलराता हुआ...।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book