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नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :462
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


5


फिर भुवन जागा, इस बार सहसा सजग; कुहनी पर जरा उठकर उसने देखा, रेखा सीधी सोयी है। उसने झुककर धीरे से उसके ओठ चूम लिए; रेखा जागी नहीं पर उसके ओठ ऐसे हिले मानो स्वप्न में कुछ कह रही है। फिर सालोमन का गीत गूँज गया :

एण्ड द रूफ़ आफ़ दाइ माउथ लाइक द बेस्ट वाइन फ़ार द बिलवेड, दैट गोएथ

डाउन स्वीटली, काजिंग द लिप्स आफ़ दोज़ दैट आर एस्लीप टु स्पीक...

(और तेरा मुख प्रियतम के लिए उत्तम मदिरा की भाँति है जिसका स्वाद मधुर है और जिस से सोये हुओं के ओठ भी मुखर हो उठते हैं।)

और उसने बड़े जोर से रेखा के ओठ चूम लिए, वह जागी और उसकी ओर उमड़ आयी।

लेट अस गेट अप अर्ली टु द विनयार्ड्स, लेट अस सी इफ़ द वाइन फ्लरिश, ह्वेदर द टेंडर ग्रेप्स एपीयर, एण्ड द पोमेग्रेनेट्स बड फ़ोर्थ : देयर विल आइ गिव दी आफ़ माइ लब्ज़।

(भोर होते ही अंगूरों के कुंज की ओर चलें; देखें कि लता कैसी है, कि नये अंगूर आये या नहीं, अनार की कलियाँ फूटीं या नहीं; और वहीं मैं तुम पर अपना प्रेम निछावर करूँगी।)

और वह उमड़ना फिर एक आप्लवनकारी लहर हो गया।

आइ एम ए वाल, एण्ड माई ब्रेस्ट्स लाइक टावर्स; देन वाज़ आइ इन हिज़ आइज़ एज़ वन दैट फाउंड फेवर...

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