लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> क्या धर्म क्या अधर्म

क्या धर्म क्या अधर्म

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9704
आईएसबीएन :9781613012796

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

322 पाठक हैं

धर्म और अधर्म का प्रश्न बड़ा पेचीदा है। जिस बात को एक समुदाय धर्म मानता है, दूसरा समुदाय उसे अधर्म घोषित करता है।


यदि हम दूसरों के मार्ग में बाधक नहीं हों तो बहुत अंशों में दूसरे लोगों का व्यवहार भी हमारे प्रति वैसा ही होगा। चोर, डाकुओं को चारों ओर अपने पकड़ने वाले ही दिखाई पड़ते हैं किन्तु सज्जन, धर्मात्मा एवं ईमानदार व्यक्ति निधड़क पैर पसार कर सोते हैं। उन्हें आत्मिक अशान्ति का अनुभव नहीं करना पड़ता जैसा कि दूसरों को हानि पहुँचाने वाले लोगों का कलेजा हर घड़ी काँपता रहता है। सत्पुरुषों का सर्वत्र आदर होता है, वे निर्धन होते हुए भी बेताज के बादशाह होते हैं। कारण यह है कि परोपकार वृत्तियों में बहुत बड़ा आध्यात्मिक आकर्षण होता है। फूल की सुगन्ध से मुग्ध मधुमक्खियाँ इसके चारों ओर भिनभिनाती फिरती हैं वैसे ही परमार्थी स्वभाव के आकर्षण से अन्य लोग अपने आप प्रशंसक एवं सहायक बन जाते हैं।

अपने कार्यों को सेवा युक्त बना देने से अन्तःकरण को असाधारण शान्ति प्राप्त होती है। जीवन में पग-पग पर उल्लास बढ़ता जाता है। कूरता, कुटिलता, छल-पाखण्ड से जो मानसिक उद्वेग उत्पन्न होता है वह जीवन को बड़ा ही अव्यवस्थित, अशान्त एवं कर्कश बना देता है। मानव जीवन में जो आध्यात्मिक अमृत छिपा हुआ है वह स्वार्थी लोगों को उपलब्ध नहीं हो सकता। जो व्यक्ति अपने ही सुख का ध्यान रखता है, अपनी ही चिन्ता करता है और दूसरों के स्वार्थो की परबाह नहीं करता वह बड़ी विषम स्थिति में फँस जाता है। सब लोग उससे घृणा करते हैं, कोई भी सच्चे दिल से उसे प्यार नहीं करता। यह हो सकता है कि मतलबी चापलूस उसकी हां में हां मिलावें, यह भी हो सकता है कि उसकी शक्ति के आतंक से डरकर विरोध करने वाले कुछ प्रत्यक्ष हानि न पहुँचा सकें तो भी अदृश्य रूप से वह बड़े भारी घाटे में रहता है। स्वार्थी मनुष्य अपेक्षाकृत अपने लिए अधिक सुख चाहता है इसके लिए दूसरों को सताता है, सताये हुए व्यक्ति की आत्मा में से शाप युक्त आहें निकलती हैं जो शब्दबेधी बाण की तरह उसके पीछे चिपक जाती हैं और उसे घोर मानसिक कष्ट देती रहती हैं। जिन लोगों की प्रत्यक्ष हानि नहीं की है वे भी स्वार्थी की अनीति से घृणा करते हैं और वे असंख्य मनुष्यों की घृणा भावनाऐं उस स्वार्थी के लिए अदृश्य रूप से बड़ी घातक परिणाम उपस्थित करने में लग जाती हैं। मोटी बुद्धि से देखने में स्वार्थी मनुष्य कुछ भौतिक वस्तुऐं इकट्ठी कर लेने वाला, मालदार भले ही दिखाई देता हो, परन्तु वह असल में बहुत बड़े घाटे में रहता है, उसकी सारी मानसिक सुख, शान्ति नष्ट हो जाती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book