ई-पुस्तकें >> कामायनी कामायनीजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना
वह बोली ''नील गगन अपार,
जिसमें अवनत घन सजन भार,
आते जाते, सुख, दुख, दिशि, पल,
शिशु सा आता कर खेल अनिल,
फिर झलमल सुंदर तारक दल,
नभ रजनी के जुगुनू अविरल,
यह विश्व अरे कितना उदार,
मेरा गृह रे उन्मुक्त-द्वार।
यह लोचन-गोचर-सकल-लोक्र,
संसृति के कल्पित हर्ष शोक,
भावोदधि से किरणों के मग,
स्वाती कन से बन भरते जग,
उत्थान-पतनमय सतत सजग,
झरने झरते आलिंगित नग,
उलझन की मीठी रोक टोक,
यह सब उसकी है नोंक झोंक।
जग, जगता आंखें किये लाल,
सोता ओढ़े तम-नींद-जाल,
सुरधनु सा अपना रंग बदल,
मृति, संसृति, नति, उन्नति में ढल,
अपनी सुषमा में यह झलमल
इस पर खिलता झरता उडुदल,
अवकाश - सरोवर का मराल,
कितना सुंदर कितना विशाल!
इसके स्तर-स्तर में मौन शांति,
शीतल अगाध है, ताप-भ्रांति,
परिवर्तनमय यह चिर-मंगल,
मुस्कराते इसमें भाव सकल,
हंसता है. इसमें कोलाहल,
उल्लास भरा सा अंतस्तल,
मेरा निवास अति-मधुर-कांति,
यह एक नीड़ है सुखद शांति।''
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