लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कामायनी

कामायनी

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :177
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9700
आईएसबीएन :9781613014295

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

92 पाठक हैं

जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना

दर्शन

वह चंद्रहीन थी एक रात,
जिसमें सोया था स्वच्छ प्रात;
उजले-उजले तरक झलमल,
प्रतिबिंबित सरिता वक्षस्थल,
धारा बह जाती बिंब अटल,
खुलता था धीरे पवन-पटल,
चुपचाप खड़ी थी वृक्ष पांत,
सुनती जैसे कुछ निजी बात।

धूमिल छायायें रहीं घूम,
लहरी पैरों को रही चूम,
''मां! तू चल आयी दूर इधर,
संध्या कब की चल गयी उधर,
इस निर्जन में अब क्या सुंदर-
तू देख रही, हां बस चल घर
उसमें से उठता गंध-धूम
श्रद्धा ने वह मुख लिया चूम।''

''मां! क्यों तू है इतनी उदास,
क्या मैं हूं तेरे नहीं पास,
तू कई दिनों से यों चुप रह,
क्या सोच रही है? कुछ तो कह,
यह कैसा तेरा दु:ख-दुसह,
जो बाहर-भीतर देता दह,
लेती ढीली सी भरी सांस,
जैसे होती जाती हताश।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai