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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


उस फकीर ने कहा कि जहां दिल में जगह हो वहां, झोपड़ा महल के तरह मालूम होता है और जहां दिल में छोटी जगह हो, वहां झोंपडा तो क्या महल भी छोटा और झोपड़ा हो जाता है। द्वार खोल दे। द्वार पर खड़े हुए आदमी को वापस कैसे लौटाया जा सकता है? अभी हम दोनों लेटे थे, अब तीन लेट नहीं सकेंगे। तीनों बैठेंगे बैठने के लिए काफी जगह है।
मजबूरी थी, पत्नी को दरवाजा खोल देना पड़ा। एक मित्र आ गया, पानी से भीगा हुआ। उसके कपड़े बदले। और वे तीनो बैठ कर गपशप करने लगे। दरवाजा फिर बंद है।
फिर किन्हीं दो आदमियों ने दरवाजे पर दस्तक दी। अब उस मित्र ने उस फकीर को कहा, वह दरवाजे के पास था, कि दरवाजा खोल दो। मालूम होता है कि कोई आया है। उस आदमी ने कहा, कैसे खोल दू दरवाजा, जगह कहां है यहां?
वह आदमी अभी दो घड़ी पहले आया था खुद और भूल गया यह बात कि जिस प्रेम ने मुझे जगह दी थी, वह मुझे जगह नहीं दी थी, प्रेम था उसके भीतर इसलिए जगह दी थी। अब फिर कोई दूसरा आ गया, जगह बनानी पड़ेगी।
लेकिन उस आदमी ने कहा, नहीं, दरवाजा खोलने की जरूरत नहीं; मुश्किल से हम तीन बैठे हुए हैं!
वह फकीर हंसने लगा। उसने कहा, बड़े पागल हो! मैंने तुम्हारे लिए जगह नहीं की थी। प्रेम था, इसलिए जगह की थी। प्रेम अब भी है, वह तुम पर चुक नहीं गया और समाप्त नहीं हो गया। दरवाजा खोलो, अभी हम दूर-दूर बैठे हैं फिर हम पास-पास बैठ जाएंगे। पास-पास बैठने के लिए काफी जगह है। और रात ठंडी है, पास-पास बैठने में आनंद ही और होगा।
दरवाजा खोलना पड़ा। दो आदमी भीतर आ गए। फिर वे पास-पास बैठकर गपशप करने लगे। और थोड़ी देर बीती है और रात आगे बढ़ गयी है और वर्षा हो रही है और एके गधे ने आकर सिर लगाया दरवाजे से। पानी मे भीग गया है। वह रात शरण चाहता है।
उस फकीर ने कहा कि मित्रो, वे दो मित्र दरवाजे पर बैठे हुए थे जो पीछे आए थे; दरवाजा खोल दो, कोई अपरिचित मित्र फिर आ गया।
उन लोगों ने कहा, यह मित्र वगैरह नहीं है, यह गधा है। इसलिए द्वार खोलने की जरूरत नहीं।
उस फकीर ने कहा कि तुम्हें शायद पता नहीं, अमीर के द्वार पर आदमी के साथ भी गधे जैसा व्यवहार किया जाता है। यह गरीब की झोपडी है, हम गधे के साथ भी आदमी जैसा व्यवहार करने की आदत से भरे हैं। दरवाजा खोल दो।
पर वे दोनों कहने लगे, जगह?
उस फकीर ने कहा, जगह बहुत है; अभी हम बैठे हैं, अब हम खड़े हो जाएंगे। खड़े होने के लिए काफी जगह है। और फिर तुम घबराओ मत, अगर जरूरत पड़ेगी तो मैं हमेशा बाहर होने के लिए तैयार हूं। प्रेम इतना कर सकता है।
एक लविंग एटीट्यूड, एक प्रेमपूर्ण हृदय बनाने की जरूरत है। जब प्रेमपूर्ण हृदय बनता है, तो व्यक्तित्व में एक तृप्ति का भाव, एक रसपूर्ण तृप्ति...!
क्या आपको कभी ख्याल है कि जब भी आप किसी के प्रति ज़रा-से प्रेमपूर्ण हुए पीछे एक तृप्ति की लहर छूट गयी है? क्या आपको कभी भी ख्याल है कि जीवन में तृप्ति के क्षण वही रहे हैं जो बेशर्त प्रेम के क्षण रहे होंगे-जब कोई शर्त न रही होगी प्रेम की। और जब आपने रास्ते चलते एक अजनबी आदमी को देखकर मुस्करा दिया होगा-उसके पीछे छूट गयी तृप्ति का कोई अनुभव है? उसके पीछे साथ आ गया एक शांति भाव! एक प्राणो में एक आनंद की लहर का कोई पता है-जब राह चलते किसी आदमी को उठा लिया हो, किसी गिरते को संभाल लिया हो, किसी बीमार को एक फूल दे दिया हो? इसलिए नहीं कि वह आपकी मां है, इसलिए नहीं कि वह आपका पिता है। नहीं, वह आपका कोई भी नहीं है। लेकिन एक फूल किसी बीमार को दे देना आनंदपूर्ण हैं।
व्यक्तित्व में प्रेम की संभावना बढ़ती जानी चाहिए। वह इतनी बढ़ जानी चाहिए-पौधों के प्रति पक्षियों के प्रति पशुओं के प्रति आदमियों के प्रति, अपरिचितों के प्रति, अनजान लोगों के प्रति, विदेशियों के प्रति-जो बहुत दूर है उनके प्रति, चांद-तारों के प्रति। प्रेम हमारा बढ़ता चला जाए।

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