लेकिन मजा यह है कि न बाप का कोई गहरा अनुभव है, न मां का कोई गहरा अनुभव है।
वे खुद भी सेक्स के तल से ऊपर नहीं उठ सके। इसलिए घबराते हैं कि कहीं सेक्स
की बात सुनकर बच्चे भी इसी तल में न उलझ जाएं।
लेकिन मैं उनसे पूछता हूं, आप किसकी बात सुनकर उलझे थे? आप अपने आप उलझ गए
थे, बच्चे भी अपने आप उलझ जाएंगे। यह हो भी सकता है कि अगर उन्हें समझ दी जाए
विचार दिया जाए, बोध दिया जाए तो शायद वे अपनो ऊर्जा को व्यर्थ करने से बच
सके, ऊर्जा को बचा सके, रूपातरित कर सकें :
रास्तों के किनारे पर कोयले का ढेर लगा होता है; वैज्ञानिक कहते हैं कि कोयला
ही हजारों साल में हीरा बन जाता हैं। कोयले और हीरे में कोई रासायनिक फर्क
नहीं है। कोई केमिकल भेद नहीं है। कोयले के भी परमाणु वही हैं जो हीरे के
हैं। कोयले का भी रासायनिक मौलिक संगठन वही है, जो हीरे का है। हीरा कोयला का
रूपांतरित-बदला हुआ रूप है। हीरा कोयला ही है।
मैं आपसे कहना चाहता हूं कि सेक्स कोयले की तरह है, ब्रह्मचर्य हीरे की तरह
है। लेकिन वह कोयले का ही बदला हुआ रूप है। वह कोयले का दुश्मन नहीं है हीरा।
वह कोयले की ही बदलाहट है। वह कोयले का ही रूपांतरण है। वह कोयले को ही समझकर
नई दिशाओं में ले गई यात्रा है।
सेक्स का विरोध नहीं है ब्रह्मचर्य, सेक्स का ही रूपांतरण है, ट्रांसफार्मेशन
है।
और जो सेक्स का दुश्मन है, वह कभी ब्रह्मचर्य को उपलब्ध नहीं हो सकता।
ब्रह्मचर्य की दिशा में जाना हो और जाना जरूरी है, क्योंकि ब्रह्मचर्य का
मतलब क्या है?
ब्रह्मचर्य का इतना मतलब है कि वह अनुभव उपलब्ध हो जाए, जो ब्रह्म की चर्या
जैसा है। जैसा भगवान का जीवन हो, वैसा जीवन उपलब्ध हो जाए।
ब्रह्मचर्य यानी ब्रह्म की चर्या, ब्रह्म जैसा जीवन! परमात्मा जैसा अनुभव
उपलब्ध हो जाए।
वह हो सकता है अपनी शक्तियों को समझकर रूपांतरित करने से।
आने वाले दो दिनों में कैसे रूपांतरित किया जा सकता है सेक्स, कैसे रूपांतरित
हो जाने के बाद काम, राम के अनुभव में बदल जाता है, वह मैं आपसे बात करूंगा।
और तीन दिन तक चाहूंगा कि बहुत गौर से सुन लेंगे, ताकि मेरे संबंध में कोई
गलतफहमी पीछे आपको पैदा न हो जाए। और जो भी प्रश्न हों ईमानदारी से और सच्चे,
उन्हें लिखकर दे देंगे, ताकि आने वाले पिछले दो दिनों में मैं उनकी आप से
सीधी-सीधी बात कर सकूं। किसी प्रश्न को छिपाने की जरूरत नहीं है। जो जिंदगी
में सत्य है, उसे छिपाने का कोई कारण नहीं है। किसी सत्य से मुकरने की जरूरत
नहीं है। जो सत्य है, वह सत्य है-चाहे हम आंख बंद करें, चाहे आंख खुली रखें।
और एक बात मैं जानता हूं, धार्मिक आदमी मैं उसको कहता हूं, जो जीवन के सारे
सत्यों को सीधा साक्षात्कार करने की हिम्मत रखता है। जो इतने कमजोर, काहिल और
नपुंसक हैं कि जीवन के तथ्यों का सामना भी नहीं कर सकते, उनके धार्मिक होने
की कोई उम्मीद कभी नहीं हो सकती।
ये आने वाले चार दिनों के लिए निमंत्रण देता हूं। क्योंकि ऐसे विषय पर यह बात
है कि शायद ऋषि-मुनियों से आशा नहीं रही है कि ऐसे विषयों पर वे बात करेंगे।
शायद आपको सुनने की आदत भी नहीं होगी। शायद आपका मन डरेगा, लेंकिन फिर मैं
चाहूंगा कि, इन पांच दिनों में आप ठीक से सुनने की कोशिश करे। यह हो सकता है
कि काम की समझ आपको राम के मंदिर के भीतर प्रवेश दिला दे। आकांक्षा मेरी यही
है। परमात्मा करे वह आकांक्षा पूरी हो।
मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उसके लिए अनुगृहीत हूं। और अंत
में सबके भीतर बैठे हुए परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार
करें।
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