अगर दुनिया को सेक्स सें मुक्त करना है, तो बच्चो को ज्यादा देर तक घर में
नग्न रहने की सुविधा होनी चाहिए। जब तक बच्चे घर में नग्न खेल सके-लड़के और
लडकियां-उन्हें नग्न खेलने देना चाहिए ताकि वे एक-दूसरे के शरीर से भली-भांति
परिचित हो जाएं और कल रास्तों पर उनको किसी स्त्री को धक्का देने की कोई
जरूरत न रह जाए। ताकि वे एक-दूसरे के शरीर से इतने परिचित हो जाएं कि किसी
किताब पर नंगी औरत की तस्वीर छापने की कोई जरूरत न रह जाए। वे शरीर से इतने
परिचित हो कि शरीर का कुत्सित आकर्षण विलीन हो सके।
लेकिन बड़ी उल्टी दुनिया है। जिन लोगों ने शरीर को ढांककर, छिपाकर खड़ा कर
दिया है, उन्हीं लोगों ने शरीर को इतना आकर्षित बना दिया है। यह हमारे ख्याल
मे नहीं आता! जिन लोगों ने शरीर को जितना ढांककर छिपा दिया, शरीर को उतना ही
हमारे मन में चिंतन का विषय बना दिया है, यह हमारे ख्याल में नहीं आता।
बच्चे नग्न होने चाहिए। देर तक नग्न खेलने चाहिए। लड़के और लड़कियां-एक-दूसरे
को नग्नता में देखना चाहिए, ताकि उनके पीछे कोई भी पागलपन न रह जाए और उनके
इस पागलपन का जीवन भर रोग उनके भीतर न चलता रहे। लेकिन वह रोग चल रहा है और
उस रोग को हम बढ़ाते चले जा रहे हैं! उस रोग के फिर हम नए-नए रास्ते खोजते है।
गंदी किताबें छपती है। जो लोग गीता के कवर में भी भीतर रखकर पढ़ते हैं।
बाइबिल में दबा लेते हैं और पढ़ते हैं। ये गंदी किताबें हैं। तो हम कहते हैं
कि गंदी किताबें बंद होनी चाहिए। लेकिन हम यह कभी नहीं पूछते कि गंदी किताबें
पढ़ने वाला आदमी पैदा क्यों हो गया है? हम कहते हैं नंगी तस्वीरें दीवारों पर
नहीं लगनी चाहिए। लेकिन हम कभी नहीं पूछते कि नंगी तस्वीरें कौन आदमी देखने
को आता है?
वही आदमी आता है, जो स्त्रियों के शरीर को देखने से वंचित रह गया है। एक
कुतूहल जाग गया है-क्या है स्त्री का शरीर!
और मैं आपसे कहता हूं, वस्त्रों ने स्त्री के शरीर को जितना सुंदर बना दिया
है, उतना सुंदर स्त्री का शरीर है नहीं। वस्त्रों में ढांककर शरीर छिपा नहीं
है और उघड़कर प्रगट हुआ है। ये सारी की सारी चितना हमारी विपरीत फल ले आई है।
इसलिए आज एक बात आपसे कहना चाहता हूं कि पहली दिन की चर्चा में, वह यह-सेक्स
क्या है? उसका आकर्षण क्या है? उसकी विकृति क्यों पैदा हुई है? अगर हम ये तीन
बातें ठीक से समझ ले तो मनुष्य का मन इनके ऊपर उठ सकता है। उठना चाहिए। उठने
की जरूरत है।
लेकिन उठने की चेष्टा गलत परिणाम लाई है। क्योंकि हमने लड़ाई खड़ी की है। हमने
मैत्री खड़ी नहीं की। दुश्मनी खड़ी की है। सप्रेशन खड़ा किया है, दमन किया है।
समझ पैदा नही की।
अंडरस्टैडिंग चाहिए, सप्रेशन नहीं।
समझ चाहिए। जितनी गहरी समझ होगी, मनुष्य उतना ही ऊपर उठता है। जितनी कम समझ
होगी, उतना ही मनुष्य दबाने की कोशिश करता है। और दबाने के कभी भी सफल
परिणाम, सुफल परिणाम, स्वस्थ परिणाम उपलब्ध नहीं होते। मनुष्य के जीवन की
सबसे बड़ी ऊर्जा है काम। लेकिन काम पर रुक नहीं जाना हैं। काम को राम तक ले
जाना है।
सेक्स को समझना है, ताकि ब्रह्मचर्य फलित हो सके। सेक्स को जानना है, ताकि हम
सेक्स से मुक्त हो सकें और ऊपर उठ सकें। लेकिन शायद ही आदमी...जीवन भर अनुभव
से गुजरता है, शायद ही उसने समझने की कोशिश की हो कि संभोग के भीतर समाधि का
क्षणभर का अनुभव है। वही अनुभव खींच रहा है। वही अनुभव आकर्षित कर रहा है।
वही अनुभव पुकार दे रहा है कि आओ। ध्यानपूर्वक उस अनुभव को जान लेना है कि
कौन-सा अनुभव मुझे आकर्षित कर रहा है? कौन मुझे खींच रहा है।
और मैं आपसे कहता हूं, उस अनुभव को पाने के सुगम रास्ते हैं। ध्यान, योग,
सामायिक, प्रार्थना-सब उस अनुभव को पाने के मार्ग हैं। लेकिन वही अनुभव हमें
आकर्षित कर रहा है। यह सोच लेना, जान लेना जरूरी है!
एक् मित्र ने मुझे लिखा-क्या आपने ऐसी बातें कहीं-कि मां के साथ बेटी बैठी था
वह सुन रही है। बाप के साथ बेटी बैठी है, वह सुन रही है! ऐसी बात सबके सामने
नहीं करनी चाहिए। मैंने उनसे कहा, आप बिल्कुल पागल हैं। अगर मां समझदार होगी,
तो इसके पहले कि बेटी सेक्स की दुनिया में उतर जाए, उसे सेक्स के संबंध में
अपने सारे अनुभव समझा देगी, ताकि वह अनजान, अधकच्चा, अपरिपक्व सेक्स के गलत
रास्तों पर न चली जाए। अगर बाप योग्य है और समझदार है तो अपने बेटे को और
बेटी को अपने सारे अनुभव बता देगा, ताकि बेटे और बेटियां गलत रास्तों पर न
चले जाएं, जीवन उनके विकृत न हो जाए।
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