मैं एक अस्पताल के पास से निकलता था। मैंने एक तख्ते पर अस्पताल की एक लिखी
हुई सूचना पढ़ी। लिखा था उस तख्ती पर-'एक आदमी को बिच्छू ने काटा है, उसका
इलाज किया गया है। वह एक दिन में ठीक होकर घर वापस चला गया। एक दूसरे आदमी को
सांप ने काटा था। उसका तीन दिन में इलाज किया गया, वह स्वस्थ होकर घर वापिस
लौट गया। उस पर तीसरी सूचना थी कि एक और आदमी को पागल कुत्ते ने काट लिया था।
उसका दस दिन से इलाज हो रहा है। वह काफी ठीक हो गया है और शीघ्र ही उसके पूरी
तरह ठीक हो जाने की उम्मीद है। और उस पर एक चौथी सूचना भी थी कि एक आदमी को
एक आदमी ने काट लिया था। उसे कई सप्ताह हो गए। वह बेहोश है, और उसके ठीक होने
की कोई उम्मीद नही है!'
मैं बहुत हैरान हुआ। आदमी का काटा हुआ इतना जहरीला हो सकता है? लेकिन अगर हम
आदमी की तरफ देखेंगे तो दिखाई पड़ेगा-आदमी के भीतर बहुत जहर इकट्ठा हो गया है।
और उस जहर के इकट्ठे हो जाने का पहला सूत्र यह है कि हमने आदमी के निसर्ग को,
उसकी प्रकृति को स्वीकार नही किया। उसकी प्रकृति को दबाने और जबरदस्ती तोड़ने
की चेष्टा की है। मनुष्य के भीतर जो शक्ति है, उस शक्ति को रूपांतरित करने
का, ऊंचो ले जाने का, आकाशगामी बनाने का हमने कोई प्रयास नहीं किया। उस शक्ति
के ऊपर हम जबरदस्ती कब्जा करके बैठ गए हैं। वह शक्ति नीचे से ज्वालामुखी की
तरह उबल रही है और धक्के दे रही है। वह आदमी को किसी भी क्षण उलटा देने की
चेष्टा क्रूर रही है और इसीलिए जरा-सा मौका मिल जाता है तो आपको पता है, सबसे
पहली बात क्या होती है?
अगर एक हवाई जहाज गिर पड़े तो आपको सबसे पहले उस हवाई जहाज में अगर पायलट हो
और आप उसके पास जाएं उसकी लाश के पास तो आपको पहला प्रश्न क्या उठेगा मन में?
क्या आपको ख्याल आएगा-यह हिंदू है या मुसलमान? नहीं। क्या आपको ख्याल आएगा कि
यह भारतीय है कि चीनी? नहीं। आपको पहला ख्याल आएगा-यह आदमी है या औरत? पहला
प्रश्न आपके मन में उठेगा, यह सी है या पुरुष? क्या आपको ख्याल है कि इस बात
का कि यह प्रश्न क्यों सबसे पहले ख्याल में आता है? भीतर दबा हुआ सेक्स है।
उस सेक्स के दमन की वजह से बाहर स्त्रियां और पुरुष अतिशय उभर कर दिखाई पड़ते
हैं।
क्या आपने कभी सोचा है? आप किसी आदमी का नाम भूल सकते है, जाति भूल सकते हैं
चेहरा भूल सकते हैं? अगर मैं आप से मिलूं या मुझे आप मिले-तो मै सब भूल सकता
क्योंकि आपका नाम क्या था, आपका चेहरा क्या था, आपकी जाति क्या थी, उम्र क्या
थी, आप किस पद पर थे-सब भूल सकता हूं। लेकिन कभी आपको ख्याल आया कि आप यह भूल
सके हैं कि जिससे आप मिले थे, वह आदमी था या औरत? कभी आप भूल सके इस बात को
कि जिससे आप मिले थे, वह पुरुष है या स्त्री? कभी पीछे यह संदेह उठा मन में
कि वह सी है या पुरुष? नही, यह बात आप कभी भी नहीं भूल सके होंगे। क्यों
लेकिन? जब सारी बातें भूल जाती हैं तो यह क्यों नहीं भूलता?
हमारे भीतर मन में कहीं सेक्स बहुत अतिशय होकर बैठा है। वह चौबीस घंटे उबल
रहा है, इसलिए सब बात भूल जाती है, लेकिन यह बात नहीं भूलती है। हम सतत
सचेष्ट हैं।
यह पृथ्वी तब तक स्वस्थ नहीं हो सकेगी, जब तक आदमी और स्त्रियों के बीच यह
दीवार और यह फासला खड़ा हुआ है। यह पृथ्वी तब तक कभी भी शांत नही हो सकेगी, जब
तक भीतर उबलती हुई आग है और उसके ऊपर हम जबरदस्ती बैठे हुए हैं। उस आग को रोज
दबाना पड़ता है। उस आग को प्रतिक्षण दबाए रखना पड़ता है। वह आग हमको भी जला
डालती है, सारा जीवन राख कर देती है, लेकिन फिर भी हम विचार करने को राजी नही
होते। यह आग क्या थी?
और मैं आपसे कहता हूं, अगर हम इस आग को समझ लें तो यह आग दुश्मन नही है,
दोस्त है। अगर हम इस आग को समझ ले तो यह हमें जलाकी नहीं हमारे घर को गरम भी
कर सकती है सर्दियों में, और हमारी रोटियां भी पका सकती है और हमारी जिदगी के
लिए सहयोगी और मित्र भी हो सकती है।
लाखों साल तक आकाश में बिजली चमकती थी। कभी किसी के ऊपर गिरती थी और जान ले
लेती थी। कभी किसी ने सोचा भी न था कि एक दिन घर में पंखा चलाएगी यह बिजली!
कभी यह रोशनी करेगी अंधेरे में, यह किसी ने नहीं सोचा था। आज-आज वही बिजली
हमारी साथी हो गई है। क्यों?
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