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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


हम जिस चीज से बचना चाहते हैं चेतना उसी पर केंद्रित हो जाती है और परिणाम में हम उसी से टकरा जाते हैं। पांच हजार वर्षों से आदमी सेक्स से बचना चाह रहा है और परिणाम इतना हुआ है कि गली कूचे में हर जगह जहां भी आदमी जाता है, वहीं सेक्स से टकरा जाता है। 'लॉ ऑफ रिवर्स इफेक्ट' मनुष्य की आत्मा को पकड़े हुए है।

क्या कभी आपने वह सोचा है कि आप चित्त को जहां से बचाना चाहते हैं चित्त वही आकर्षित हो जाता है, वहीं निमंत्रित हो जाता है। जिन लोगों ने मनुष्य को सेक्स के विरोध में समझाया, उन लोगों ने ही मनुष्य को कामुक बनाने का जिम्मा भी अपने ऊपर ले लिया है।
मनुष्य की अति कामुकता गलत शिक्षाओं का परिणाम है।
और आज भी हम भयभीत होते हैं कि सेक्स की बात न की जाए! क्यो भयभीत होते है? भयभीत इसलिए होते हैं कि हमें डर है कि सेक्स के संबंध में बात करने से लोग और कामुक हो जाएंगे।
मैं आपको कहना चाहता हूं कि यह बिल्कुल ही गलत भ्रम है। यह शत प्रतिशत गलत है। पृथ्वी उसी दिन सेक्स से मुक्त होगी, जब हम सेक्स के संबंध में सामान्य, स्वस्थ बातचीत करने में समर्थ हो जाएंगे। जब हम सेक्स को पूरी तरह से समझ सकेंगे, तो ही हम सेक्स का अतिक्रमण कर सकेंगे।
जगत में ब्रह्मचर्य का जन्म हो सकता है। मनुष्य सेक्स के ऊपर उठ सकता है, लेकिन सेक्स को समझकर, सेक्स को पूरी तरह पहचान कर। उस ऊर्जा के पूरे अर्थ, मार्ग, व्यवस्था को जानकर, उससे मुक्त हो सकता है।
आंखें बंद कर लेने से कोई कभी मुक्त नहीं हो सकता। आंखें बंद कर लेने वाले सोचते हों कि आंखें बंद कर लेने से शत्रु समाप्त हो गया है, तो वे पागल हैं। मरुस्थल में शुतुरमुर्ग भी ऐसा ही सोचता है दुश्मन हमले करते है तो शुतुरमुर्ग मरुस्थल। रेत में सिर छिपा कर खड़ा हो जाता है और सोचता है कि जब दुश्मन मुझे दिखाई नही पड़ रहा तो दुश्मन नहीं है। लेकिन यह तर्क-शुतुमुर्ग को हम क्षमा भी कर सकते हैं आदमी को क्षमा नहीं किया जा सकता।

सेक्स के संबंध में आदमी ने शुतुरमुर्ग का व्यवहार किया है आज तक। वह सोचता है, आंख बंद कर लो सेक्स के प्रति तो सेक्स मिट गया। अगर आंख बंद कर लेने से चीजें मिटती होती तो बहुत आसान थी जिंदगी बहुत आसान होती दुनिया। आंखें बंद करने से कुछ मिटता नहीं बल्कि जिस चीज के संबंध में हम आखें बंद करते हैं हम प्रमाण देते हैं कि हम उससे भयभीत हो गए हैं हम डर गए हैं। यह हमसे ज्यादा मजबूत है। उससे हम जीत त्रहीं सकते हैं इसलिए हम आंख बंद करते हैं। आंख बंद करना कमजोरी का लक्षण है।

और सेक्स के बाबत सारी मनुष्य-जाति आंख बंद करके बैठ गई है! न केवल आंख बंद करके बैठ गई है, बल्कि उसने सब तरह की लड़ाई भी सेक्स से ली है और उसके परिणाम, उसके दुष्परिणाम सारे जगत में ज्ञात हैं।
अगर सौ आदमी पागल होते हैं तो उसमें से 98 आदमी सेक्स को दबाने की वजह से पागल होते हैं। अगर हजारों स्त्रियां हिस्टीरिया से परेशान हैं तो उसमें सौ में से 99 स्त्रियों के पीछे हिस्टीरिया के, मिरगी के, बेहोशी के, सेक्स की मौजूदगी है। सेक्स का दमन मौजूद है।

अगर आदमी इतना बेचैन, अशांत इतना दुःखी और पीड़ित है तो इस पीड़ित होने के पीछे उसने जीवन की एक बड़ी शक्ति को बिना समझे उसकी तरफ पीठ खड़ी कर ली है। उसका कारण है। और परिणाम उल्टे आते हैं।
अगर हम मनुष्य का साहित्य उठाकर देखें, अगर किसी देवलोक से कभी कोई देवता आए या चंद्रलोक से या मंगलग्रह से कभी कोई यात्री आए और हमारी किताबें पढ़े, हमारा साहित्य देखे, हमारी कविता पढ़े, हमारे चित्र देखे तो बहुत हैरान हो जाएगा। वह हैरान हो जाएगा यह जानकर कि आदमी का सारा साहित्य सेक्स पर क्यों केंद्रित है? आदमी की सारी कविताएं सेक्युअल क्यों हैं? आदमियों की सारी कहानियां, सारे उपन्यास सेक्सुअल क्यों हैं? आदमी की हर किताब के ऊपर नंगी औरत की तस्वीर क्यों है? आदमी की हर फिल्म नगे आदमी की फिल्म क्यों है? वह आदमी बहुत हैरान होगा। अगर कोई मंगल से आकर हमें इस हालत में देखेगा तो बहुत हैरान होगा। वह सोचेगा, आदमी सेक्स के सिवाए क्या कुछ भी नहीं सोचता? और आदमी से अगर पूछेगा, बातचीत करेगा तो बहुत हैरान हो जाएगा।
आदमी बातचीत करेगा आत्मा की, परमात्मा की, स्वर्ग की, मोक्ष की। सेक्स की कभी कोई बात नहीं करेगा! और उसका सारा व्यक्तित्व चारों तरफ से सेक्स से भरा हुआ है! वह मंगलग्रह का वासी तो बहुत हैरान होगा। वह कहेगा बातचीत कभी नहीं की जाती जिस चीज की, उसको चारों तरफ से तृप्त करने की हजार-हजार पागल कोशिशें क्यों की जा रही हैं?

आदमी को हमने 'परवर्ट' किया है, विकृत किया है और अच्छे नामों के आधार पर विकृत किया है। बह्मचर्य की बात हमें करते हैं। लेकिन कभी इस बात की चेष्टा नहीं करते कि पहले मनुष्य की काम की ऊर्जा को समझा जाए, फिर उसे रूपांतरित करने के प्रयोग भी किए जा सकते हैं। बिना उस ऊर्जा को समझे दमन की, संयम की सारी शिक्षा, मनुष्य को पागल, विक्षिप्त और रुग्ण करेगी। इस
संबंध में हमें कोई भी ध्यान नहीं है! यह मुनुष्य इतना रुग्ण, इतना दीन-हीन कभी भी न था, इतना विषाक्त भी न था, इतना, 'पायजनस' भी न था, इतना दुःखी भी न था।

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