लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

Like this Hindi book 0

संभोग से समाधि की ओर...


लेकिन हम धुएं को देखकर ही वापस लौट आते हैं और ज्योति को नहीं खोज पाते हैं। या जो लोग थोड़ी हिम्मत करते हैं वे धुएं में ही खो जाते हैं और ज्योति तक नहीं पहुंच पाते हैं।
यह यात्रा कैसे हो सकती है कि हम धुएं के भीतर छिपी हुई ज्योति को जान सकें, शरीर के भीतर छिपी हुई आत्मा को पहचान सकें, प्रकृति के भीतर छिपे हुए परमात्मा के दर्शन कर सकें? यह कैसे हो सकता है? उस संबंध में ही तीन चरणों में मुझे बातें करनी हैं।
पहली बात हमने जीवन के संबंध में ऐसे दृष्टिकोण बना लिए हैं हमने जीवन के संबंध में ऐसी धारणाएं बना ली हैं, हमने जीवन के संबंध में ऐसा फलसफा खड़ा कर रखा है कि उस दृष्टिकोण और धारणा के कारण ही जीवन के सत्य को देखने से हम वंचित रह जाते हैं। हमने मान ही लिया है कि जीवन क्या है- बिना खोजे, बिना पहचाने बिना जिज्ञासा किए। हमने जीवन के संबंध मे कोई निश्चित बात ही समझ रखी है।
हजारों वर्षों से हमें एक ही बात मंत्र की तरह पढ़ाई जा रही है कि जीवन असार है, जीवन व्यर्थ है, जीवन दुःख है। सम्मोहन की तरह हमारे प्राणों पर यह मंत्र दोहराया गया है कि जीवन व्यर्थ है, जीवन असार है, जीवन दुःख है। जीवन छोड़ देने योग्य है। यह बात, सुन-सुन कर धीरे-धीरे हमारे प्राणों में पत्थर की तरह मजबूत होकर बैठ गई है। इस बात के कारण जीवन असार दिखाई पड़ने लगा है, जीवन दुःख दिखाई पड़ने लगा है। इस बात के कारण जीवन ने सारा आनंद, सारा प्रेम सारा सौंदर्य खो दिया है। मनुष्य एक कुरूपता बन गया है। मनुष्य एक दुःख का अड्डा बन गया है।
और जब हमने यह मान ही लिया कि जीवन व्यर्थ है, असार है, तो उसे सार्थक बनाने की सारी चेष्टा भी बंद हो गई हो तो आश्चर्य नहीं है। अगर हमने यह मान ही लिया है कि जीवन एक कुरूपता है तो उसके भीतर सौंदर्य की खोज कैसे हो सकती है? और अगर हमने यह मान ही लिया है कि जीवन सिर्फ छोड़ देने योग्य
है, तो जिसे छोड़ ही देना है, उसे सजाना, उसे खोजना, उसे निखारना इसकी कोई भी जरूरत नहीं है।

हम जीवन के साथ वैसा व्यवहार कर रहे हैं, जैसा कोई आदमी स्टेशन पर विश्रामालय के साथ व्यवहार करता है, वेटिंग रूम के साथ व्यवहार करता है। वह जानता है कि क्षणभर हम इस वेटिंग में ठहरे हुए हैं क्षणभर बाद छोड़ देना है, इस वेटिंग रूम से प्रयोजन क्या है, अर्थ क्या है? वह वहां मूंगफली के छिलके भी डालता है, पान भी थूक देता है, गंदा भी करता है और फिर भी सोचता है, मुझे क्या प्रयोजन है? क्षणभर बाद मुझे चले जाना है।

जीवन के संबंध में भी हम इसी तरह का व्यवहार कर रहे हैं, जहां से हमें क्षणभर बाद चले जाना है! वहां सुंदर और सत्य की खोज और निर्माण करने की जरूरत क्या है?
लेकिन मैं आपसे कहना चाहता हूं, जिंदगी जरूर हमें छोड़कर चले जाना है; लेकिन जो असली जिंदगी है, उसे हमें कभी भी छोड़ने का कोई उपाय नहीं है। हम यह घर छोड़ देंगे, यह स्थान छोड़ देंगे; लेकिन जो जिंदगी का सत्य है, वह सदा हमारे साथ होगा, वह हम स्वयं हैं। स्थान बदल जाएंगे, मकान बदल जाएंगे, लेकिन जिंदगी?...जिंदगी हमारे साथ होगी। उसके बदलने का कोई उपाय नहीं है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book