नागसेन मुड़ा और उसने कहा, देखते हैं सम्राट् मिलिंद, यह रथ खड़ा है जिस पर मैं
आया। सम्राट् ने कहा, हां, रथ है। तो भिक्षु नागसेन पूछने लगा, घोड़े को
निकालकर अलग कर लिया जाए। घोड़े अलग कर लिए गए। और उसने पूछा मप्राf से, ये
घोड़े रथ हैं?
सम्राट् ने कहा, घोड़े कैसे रथ हो सकते है? घोड़े अलग कर दिए गए। सामने के
डंडे जिनसे घोड़े बंधे थे. खिचवा लिए गए।
उसने पूछा कि ये रथ हैं?
सिर्फ दो डंडे कैसे रथ हो सकते हैं? डंडे अलग कर दिए गए। चाक निकलवा लिए। और
कहा, ये रथ हैं?
सम्राट् ने कहा, ये चाक हैं ये रथ नहीं हैं।
और एक-एक अंग रथ से निकलता चला गया। और एक-एक अंग पर सम्राट् को कहना पड़ा कि
नहीं ये रथ नहीं हैं। फिर आखिर पीछे शून्य बच गया, वहां कुछ भी न बचा।
भिक्षु नागसेन पूछने लगा, रथ कहां है अब? रथ कहां ते अब! और जितनी चीजें
मैंने निकाली तुमने कहा ये भी रथ नहीं! ये भी रथ नहीं, ये भी रथ नहीं? अब रथ
कहां है?
तो सम्राट् चौककर खड़ा रह गया-रथ पीछे बचा भी नहीं था और जो चीजे निकल गई थी,
उनमें कोई रथ था भी नहीं।
तो वह भिक्षु कहने लगा, समझे आप? रथ एक जोड़ था। रथ कुछ चीजो का संग्रह मात्र
था। रथ का अपना होना नहीं है, कोई 'इगो' नहीं है। रथ एक जोड़ है!
आप खोजे-कहां है आपका 'मैं' और आप पाएंगे कि अनंत शक्तियो के एक जोड़ हैं;
'मैं' कहीं भी नहीं है। और एक-एक अंग आप सोचते चले जाएं तो एक-एक अंग समाप्त
होता चला जाता है, फिर पीछे शून्य रह जाता है। उसी शून्य से प्रेम का जन्म
होता है, क्योंकि वह शून्य आप नहीं हैं वह शून्य परमात्मा है।
एक गांव में एक आदमी ने मछलियों की एक दुकान खोली थी। बड़ी दुकान थी। उस गांव
में पहली दुकान थी। तो उसने एक खूबसूरत तख्ती बनवाई उाएार उस पर
लिखाया-'फ्रेश फिश सोल्ड हियर-यहां ताजी मछलिया बेची जाती है।
पहले ही दिन दुकान खुली और एक आदमी आया और कहने लगा...'फ्रेश फिश सील्ड
हियर?' ताजी मछलियां? कहीं बासी मछलियां भी बेची जाती हैं? ताजी लिखने की
क्या जरूरत?
दुकानदार ने सोचा कि बात तो ठीक है। इससे और व्यर्थ की बातों का ख्याल पैदा
होता है। उसने 'फ्रेश' अलग कर दिया, ताजा अलग कर दिया। तख्ती रह गई 'फिश
सोल्ड हियर', मछलियां बेची जाती हैं मछलियां यहां बेंची जाती है।
दूसरे दिन एक बूढ़ी औरत आई और उसने कहा कि मछलियां यहां बेची जाती हैं-'सोल्ड
हियर?' कहीं और कहीं भी बेचते हो?
तो उस आदमी ने कहा कि यह 'हियर' बिल्कुल फिजूल है। उसने तख्ती पर से एक शब्द
और अलग कर दिया, रह गया 'फिश सोल्ड'।
तीसरे दिन एक आदमी आया और कहने लगा 'फिश सोल्ड?' मछलियां बेची जाती हैं?
मुफ्त भी देते हो क्या?
आदमी ने कहा, यह 'सील्ड' भी बेकार है। उस 'सील्ड' को अलग कर दिया। अब रह गई
वहां तख्ती 'फिश'।
एक बुड्डा आया और कहने लगा, 'फिश'? अंधे को भी मील भर दूर से बास मिल जाती
है। यह तख्ती काहे के लिए लटकाई हुई है यहां?
'फिश' भी चली गई। खाली तख्ती रह गई वहां।
और एक आदमी आया उसने कहा, यह तख्ती किसलिए लगाई है? इससे दुकान पर आड़ पड़ती
है।
वह तख्ती भी चली गई, वहा कुछ भी नहीं रह गया। इलीमिनेशन होता गया। एक-एक चीज
हटती चली गई। पीछे जो शेष रह गया, वह शून्य है।
उस शून्य से प्रेम का जन्म होता है, क्योंकि उस शून्य में दूसरे के शून्य से
मिलने की क्षमता है। सिर्फ शून्य ही शून्य से मिल सकता है और कोई नहीं। दो
शून्य मिल सकते है, दो व्यक्ति नहीं। दो इंडीवीज्युल नहीं मिल सकते; दो
वैक्यूम, दो एमप्टीनेसेस मिल सकते हैं क्योंकि बाधा अब कोई भी नहीं है। शून्य
की कोई दीवाल नहीं होती और हर चीज की दीवाल होती है।
...Prev | Next...