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हौसला
हौसला
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9698
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आईएसबीएन :9781613016015 |
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9 पाठकों को प्रिय
198 पाठक हैं
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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं
कुछ लघुकथाओं में लेखक ने विकलांगों का आपसी सद्व्यवहार व त्याग भी दिखाया है। 'कमली' लघुकथा में भीख मांगते-मांगते कमली व उसकी माँ के पांवों में बिवाइयां पड़ जाती हैं, लेकिन दोनों अपनी बिवाइयों का दर्द भूल जाती हैं और मां अपनी बेटी कमली से अपने बेटे कमलू के लिए पानी गर्म रखने को कहती है। इसी तरह 'दोस्त' लघुकथा में दो अपंग मित्र इकट्ठे रहते हैं। सूरदास को मालूम है कि उसके मित्र की पोटली में सिर्फ एक रोटी बची है। मित्र इकलौती रोटी सूरदास को देते हुए कहता है-भाई सूरदास, कल की दो रोटियां रखी है, एक तुम खा लो... दूसरी मैं खा लूँगा।' इस पर सूरदास कहता है कि आज मेरा व्रत है। इसलिए गोपाल तूं ही इन्हें खा ले।' सहयोग व त्याग का यह अच्छा उदाहरण है।
अपंग व्यक्तियों की मदद उनके स्वाभिमान को बचाए रखकर कैसे करें-इस पर भी मधुकांत की कलम चली है। 'बैसाखियों' में निर्मल का दोस्त निकेतन पांवों से लाचार है। उसकी बैसाखियों बड़ा शोर करती हैं।
इसलिए एक दिन निर्मल पुरानी बैसाखियों के बदले चुपके से नई बैसाखियाँ रख देता है। 'नेत्रदान' लघुकथा में पापा के नेत्रदान करने की इच्छा को मां की विह्वलता देखकर बेटी पूरी नहीं कर पाती, जिसका उसे पछतावा होता है। वह मां को पत्र में लिखती है-पापा को बचाना तो हमारे हाथ में नहीं था, परन्तु उनकी आँखों को तो जिंदा रख सकते थे।'
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