ई-पुस्तकें >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं
अपंग लोग भी भीख के नाम पर धंधा करते हैं, इसे मधुकांत की लघुकथा -'भिखारी' में दर्शाया गया है। दो रोटी मांगते हुए भिखारी के लिए दिन में कई लोग ढाबे वाले को बीस-बीस रूपए देते हैं, पर भिखारी उनमें से पांच-पांच रूपए ढाबे वाले को देकर शेष राशि शाम को ले लेता है और शराब-मीट में उड़ा देता है।
इन लघुकथाओं की सबसे बड़ी शक्ति इनकी सामाजिक उपयोगिता है। इसलिए इनके कलात्मक आयाम पर बात करना बेमानी है। हालांकि कुछ लघुकथाएँ भर्ती की लगती हैं (लंगड़ी कृतिया, उस पार), कहीं भावुकता (चिड़िया) या अस्वाभाविकता ('अनहोनी' में गोली की आवाज न सुनी जाना) है। 'अंगूठा' में अपंग को उत्साहित करने के उद्देश्य में अनजाने ही ऐतिहासिक अन्याय का महिमा-मंडन हो गया है। लेकिन इन दो-चार लघुकथाओं के अलावा प्रस्तुत लघुकथा संग्रह जिस उदात्त को लेकर तैयार किया गया है, उस प्रयास में लेखक पूर्णरूप से सफल हुआ है। इस संग्रह की लघुकथाएँ शारीरिक रूप से अपंग व्यक्तियों की समझ, स्वाभिमान और साहस को सामने लाती हैं, साथ ही उनमें इन गुणों को उभारने की अपेक्षा भी रखती हैं। साथ ही समाज को इन अपंग व्यक्तियों के प्रति अपना उदार दृष्टिकोण अपनाने पर बल देती लगती हैं, ताकि एक समरसतापूर्ण समाज का निर्माण हो सके, जिसमें उपेक्षा नहीं, अपेक्षा हो; जिसमें घृणा और तिरस्कार नहीं, आदर और प्यार हो; जिसमें शारीरिक अपंगता अभिशाप न समझी जाए और ऐसे व्यक्तियों को बोझ न समझा जाए। लेखक मधुकांत को ऐसे साहसिक व सौहार्दपूर्ण प्रयास के लिए बधाई।
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