ई-पुस्तकें >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं
कुछ संस्मरण, कुछ प्रावधान
- संदीप तोमर
हमारा समाज विकलांग व्यक्तियों के लिए उनकी योग्यता के लिए अथवा उनकी आवश्यकता, परेशानियों के लिए या तो मौन-मुद्रा अख्तियार कर लेता है या फिर सहानुभूति (दया) दिखा देता है, वह चाहता ही नहीं कि विकलांग व्यक्ति समाज की मुख्यधारा से जुड़कर उसका अभिन्न हिस्सा बने और देश, समाज की तरक्की में अपना योगदान दे।
हम यदि अपने आस-पास के विकलांगों की स्थिति पर नजर डालें तो हमें उनके जीवन-स्तर एवं आजीविका से लेकर समाज में अपनी पहचान बनाने तक की संघर्ष गाथा समझ आ पायेगी। समाज विकलांगों को जब हेय दृष्टि से देखता है तो वह भूल जाता है कि विश्व में अनेक विकलांग ऐसे भी हुए जिन्होंने शारीरिक विकलांगता को अपने जीवन, व्यवसाय इत्यादि में कोई बाधा नहीं माना ओर समाज के सामने मिसाल कायम की। लुई वेडेल, मिल्टन, आइंस्टीन, जेम्स वाट, अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन इत्यादि अनेक हस्तियां किसी न किसी प्रकार की विकलांगता से ग्रस्त रहीं तथापि वे प्रसिद्धि की बुलंदियों तक पहुंचे। वर्तमान समय में राजेन्द्र यादव सरीखे लेखकों ने 'विकलांगता महानता में बाधक नहीं होती' जैसे मुहावरों को जन्म दिया। विकलांगता शारीरिक विकृति तो हो सकती है परन्तु इसे महानता की सीढ़ी में बाधा मानना उतना ही बेहूदा है जितना की मानसिक रुग्ण होना। यदि हमारे अन्दर आत्म विश्वास है और हमने अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया है कि निस्सन्देह हम अपनी मंजिल तक पहुँच सकते हैं। मैंने अपने जीवन में आत्म विश्वास से लबरेज ऐसे शख्स देखे जिन्हें देखकर आपकी आँखे चुँधिया जाएं। ऐसे ही एक बार आन्ध्र प्रदेश गया। वहाँ एक बच्चे से मिला जिसके दोनों हाथ कटे थे वह पैरों से बुश कर रहा था, मेरे लिए ये किसी सातवें आश्चर्य से कम नहीं था। वह बच्चा पैरों से मग उठाकर कुल्ला कर रहा था। इतना ही नहीं दोस्तों, मैंने देखा उसने अपने पैरों से ही अपनी कमीज के बटन तक खोले।
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