ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक हनुमान बाहुकगोस्वामी तुलसीदास
|
8 पाठकों को प्रिय 105 पाठक हैं |
सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र
। 6 ।
गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक,
निपट निसंक परपुर गलबल भो ।
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर,
कंदुक-ज्यों कपिखेल बेल कैसो फल भो ।।
संकटसमाज असमंजस भो रामराज,
काज जुग-पूगनिको करतल पल भो ।
साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह
लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ।।
भावार्थ - समुद्र को गोखुर के समान करके निडर होकर लंका-जैसी (सुरक्षित नगरी को) होलिका के सदृश जला डाला, जिममें पराये (शत्रुके) पुरमें गड़बड़ी मच गयी। द्रोण-जैसा भारी पर्वत खेल में ही उखाड़ गेंद की तरह उठा लिया, वह कपिराज के लिये बेल-फल के समान क्रीडा की सामग्री बन गया। रामराज्य में अपार संकट (लक्ष्मण-शक्ति) से असमंजस उत्पन्न हुआ (उस समय जिसके पराक्रम से) युगसमूह में होनेवाला काम पलभर में मुट्ठी में आ गया। तुलसी के स्वामी बड़े साहसी और सामर्थ्यवान् हैं, जिनकी भुजाएँ लोकपालों को पालन करने तथा उन्हें फिर से स्थिरतापूर्वक बसाने का स्थान हुईं।। 6 ।।
|