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ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 5 ।

भारतमें पारथके रथकेतु कपिराज,
गाज्यो सुनि कुरुराज दल हलबल भो ।
कह्यो द्रोन भीषम समीरसुत महाबीर,
बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ।।

बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि,
फलँग फलाँगहूँतें घाटि नभतल भो ।
नाइ-नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं,
हनुमान देखे जगजीवनको फल भो ।।

भावार्थ - महाभारत में अर्जुन के रथ की पताका पर कपिराज हनुमान जी ने गर्जन किया, जिसको सुनकर दुर्योधन की सेना में घबराहट उत्पन्न हो गयी। द्रोणाचार्य और भीष्मपितामह ने कहा कि ये महाबली पवनकुमार हैं। जिनका बल वीररसरूपी समुद्र का जल हुआ है। इनके स्वाभाविक ही बालकों के खेल के समान धरती से सूर्यतक के कुदान ने आकाशमण्डल को एक पग से भी कम कर दिया था। सब योद्धागण मस्तक नवा-नवाकर और हाथ जोड़-जोड़ कर देखते हैं। इस प्रकार हनुमानजी का दर्शन पाने से उन्हें संसार में जीने का फल मिल गया।।

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