ई-पुस्तकें >> हमारे बच्चे - हमारा भविष्य हमारे बच्चे - हमारा भविष्यस्वामी चिन्मयानंद
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वर्तमान में कुछ काल और जुड़ जाने पर भविष्य बन जाता है। वर्तमान तथा कुछ समय ही भविष्य है।
पिता तो दिन भर संसार में मार खाते, घायल होते और लड़ते-झगड़ते सायं काल तूफान की तरह घर आता है। वह अपने दमित भावों को कार्यालय में तो व्यक्त नहीं कर पाता, किन्तु घर आने पर यदि उसके बच्चे सामने पड़ जाते हैं तो वे उसके क्रोध के शिकार बनते हैं। माँ उस बेचारे बच्चे की सहायता करती है 'चलो भागो, बाहर खेलो बे आ रहे होंगे।' वह स्वयं उनका क्रोध सहन करने के लिए चुपचाप खड़ी रहती है या मुस्कराती रहती है। कभी-कभी दो आँसू ढरक जाते हैं। तभी शायद कोई पड़ोसिन शक्कर माँगने आ जाती है। पुरुष अपना क्रोध उसी पर उतार देता है, 'तुम क्या लेने आ गयीं? माँ धीरे से पीछे की ओर जाती है और चुपके से एक प्याला चीनी दे देती है।
बच्चा इन सब बातों को बडी सावधानी से देखता है। उसकी समस्त नैतिक शिक्षा को धूल की तरह फूंक कर उड़ा देने के लिए यही दो घटनाये पर्याप्त हैं। उसके लिए ऐसी बहुत सी घटनायें होना जरूरी नहीं है।
यदि पिता बच्चे के साथ दस मिनट के लिए बैठेगा तो वह क्या बात करेगा 'वह नैतिकता की कोमल-कान्त पदावली न बोलेगा। वह बच्चे में केवल महात्वाकांक्षा, सफलता और बड़ा आदमी बनने का मंत्र ही फूँकेगा, 'बेटा तुम बडे होकर डाक्टर बनना, इन्जीनियर बनना, और खूब पैसा कमाना। समाज में तुम्हारा विशिष्ट स्थान होगा।
माता ही अपने बच्चे को सदाचार की शिक्षा दे सकती है। वही उदारता, क्षमाशीलता, सहनशीलता, प्रेम, सहानुभूति, दान, दया आदि सद्गुणों का आदर करना सिखा सकती है। यह सब सिखाने के लिए माँ कभी अपने बच्चे को भाषण नहीं देती। वह उन गुणों का स्वयं आचरण कर उसके सामने एक आदर्श प्रस्तुत करती है। बच्चा उसे देखता है और उसके हृदय मे वैसे ही भाव घर कर जाते हैं।
किन्तु मातायें जब स्वयं अपने मूँछे उगाने लगेंगी और पुरुषों से ताल ठोंक कर लड़ेंगी तो बच्चे कोमल भावों से वंचित अवश्य रह जायेंगे। उन्हें उदारता के भाव कहाँ मिलेंगे। जब माताओं ने अपने देश के आध्यात्मिक मूल्यों का त्याग कर दिया और पुरुषों का जीवन स्खलित और अनैतिक हो गया तो बच्चों का भी जीवन स्तर गिर गया। ऐसा होना स्वाभाविक था।
छोटे बच्चे युवा होकर जब अपने आसपास देखते हैं तो उन्हें बचपन की प्राप्त हुई शिक्षा खोखली और मूल्यहीन दिखाई देने लगती है। यद्यपि वे अपने से सन्तुष्ट नहीं होते किन्तु वे निम्न सामाजिक मूल्यों का विरोध कर संघर्ष करने का साहस नहीं करते। उनके सामने पलायन का ही विकल्प रह जाता है। वे शराब पीते हैं और ड्रग्स खाते हैं। क्या आप इन युवकों के पलायन के लिए और आत्मघाती मार्ग पर जाने के लिए उत्तरदायी नहीं है' थोड़ा विचार करें।
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