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हमारे बच्चे - हमारा भविष्य

स्वामी चिन्मयानंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9696
आईएसबीएन :9781613012673

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वर्तमान में कुछ काल और जुड़ जाने पर भविष्य बन जाता है। वर्तमान तथा कुछ समय ही भविष्य है।

हम माता-पिता ही बदलें

बच्चे पुस्तकों से नहीं सीखते हैं। जीवन के उच्च मूल्य छात्रों को विद्यालयों में प्राप्त नहीं हो सकते। उन्हें समाज या संस्था भी सिखा नहीं सकती। वे तो अपने माता-पिता का अनुसरण करते हैं। दुर्भाग्य से यदि माता-पिता ही असभ्य हैं, तो बच्चों का क्या होगा? रावण के राज्य में हर बच्चा रावण की भांति ही निशाचर बनने का प्रयास करेगा। हिरण्यकशिपु के राज्य में हर बालक एक 'छोटा-हिरण्यकशिपु' ही होगा।

इसलिए कहते हैं कि जब हिरण्यकशिपु बन में तप करने चला गया तो इन्द्र को एक अनुसंधानात्मक प्रयोग करने का अवसर मिल गया। उन्होंने सोचा कि यदि एक हिरण्यकशिपु ही जीवन के उच्च मूल्यों को विध्वंस करने के लिये पर्याप्त हे तो उस समय क्या होगा जब इस देश का हर बच्चा बडा होकर हिरण्यकशिपु बन जायेगा? इसलिए उस समय की सभी गर्भबती स्त्रियों को वह स्वर्गलोक ले गया और वहां बच्चों को नये वातावरण में पालकर श्रेष्ठ मनुष्य बनाया। उनके परम्परागत संस्कार इतने कलुषित हो गये थे कि उनमें सुधार किए बिना वे मानवी गौरब प्राप्त नहीं कर सकते थे।

उसी समय देवलोक में देवर्षि नारद पहुंचे। उन्होंने अपना प्रयोग करने के लिए एक गर्भवती स्त्री, हिरण्यकशिपु की पत्नी को इन्द्र से मॉगा और उसे वसिष्ठ आश्रम में ले गये। वहाँ वह दिनरात वेदान्त पर प्रवचन सुनती थी। इस प्रकार वेदान्त सुनते हुए, उसने स्वयं उसे भले ही बहुत कम समझा हो किन्तु उसके उदर में पल रहे बच्चे ने सात से दस महीने के वीच संस्कार प्राप्त किया। माँ के पेट में भी बच्चे शिक्षा पाते हैं। वह जन्म-पूर्व शिक्षा है।

यही वह बालक था. जो जन्म लेते ही राजमहल में वापस लाया गया तो विश्व प्रसिद्ध प्रह्लाद बन गया।

यद्यपि जन्म लेने के बाद उसे किसी ने पढ़ाया नहीं किन्तु वह जीवन के उच्च मूल्यों के प्रति समर्पित था। उसका पिता चाहता था कि वह भी उसकी तरह हिरण्यकशिपु ही बने किन्तु वह बालक अपनी जन्म-पूर्व आध्यात्मिक शिक्षा के कारण भौतिक संस्कृति का विरोधी हो गया। उस समय देश में भौतिकवाद ही बढ़ रहा था। प्रह्लाद पुन अपने देश को उपनिषदों के उच्च शाश्वत मूल्यों की ओर वापस ले आया।

किन्तु आजकल की मातायें अपने बच्चों को जन्म-पूर्व की क्या शिक्षा दे रही हैं - सिनेमा, वीडियो, मूर्खता से भरे उपन्यास, होटल, हवाई अड्डे - यही संस्कार आप अपने बच्चों को दे रही हैं। जन्म लेने के बाद जब वे राक्षस रूप धारण करते हैं तो आप कहते हैं 'मेरे बच्चे बिगड गये हें, पता नहीं दुनिया किधर जा रही है।‘ वस्तुतः गलती तो अपनी है। हमें साहस के साथ स्वीकार करना चाहिए कि इस भयंकर राक्षसी युग के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं। अब हमें विवश होकर उसमें रहना पड़ रहा है।

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