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आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री और यज्ञोपवीत

गायत्री और यज्ञोपवीत

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9695
आईएसबीएन :9781613013410

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यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।


यज्ञोपवीत धारण करना इस बात का प्रतीक नहीं कि इस व्यक्ति का पूर्ण आध्यात्मिक विकास हो गया। वरन् इस बात का प्रतीक है कि इस व्यक्ति ने आदर्श-जीवन, धर्ममय जीवन व्यतीत करने का संकल्प किया है। और वह अषनी परिस्थिति के अनुसार यथासाध्य अधिक से अधिक प्रयत्न करता हुआ लक्ष्य तक पहुँचने की ईमानदारी के साथ चेष्टा करेगा। ऐसी दशा में यह झिझक करना व्यर्थ है कि हम इस योग्य नहीं कि उपवीत धारण करें। इस अयोग्यता का निवारण उसके धारण करने से ही तो होगा। जो यह कहता है कि मैं तैर नहीं सकता। जो कहता है कि मैं घोड़े पर चढ़ना नहीं जानता इसलिए नहीं चढूँगा, उसे जानना चाहिए कि घोड़े की पीठ पर बैठे बिना घुड़सवार नहीं बन सकता। यह ठीक है कि आरम्भ में काफी कठिनाई प्रतीत होती है, आरम्भ में काफी गलतियाँ भी होती हैं पर उनका संशोधन तो धीरे-धीरे अभ्यास करने से उस कार्य में लगने से ही तो होगा। ऐसा कोई कायदा इस संसार में नहीं है कि आप किसी कार्य में पूर्ण पारंगत हो जावें, तब उस कार्य को आरम्भ करें। कार्य को आरम्भ करने से ही उसमें कुशलता प्राप्त होती है। जनेऊ धारण करके जब आप द्विजत्व प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ेंगे तो आप धीरे-धीरे इस मंजिल को पार करते एक दिन सच्चे अर्थों में द्विज कहने योग्य बनेंगे तभी तो आपको द्विजत्व की प्राप्ति होगी।

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