लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री और यज्ञोपवीत

गायत्री और यज्ञोपवीत

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9695
आईएसबीएन :9781613013410

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

259 पाठक हैं

यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।


ऐसी ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त एक महात्मा अपने सन्ध्या-वन्दन न करने का कारण बताते हुए कहते हैं कि -

हृदाकाशेचिदादित्य:   सर्वदैव   प्रकाशते।
नास्तमेति न चोदेति कथं सम्मामुपास्महे।।

'हृदय आकाश में सदा ज्ञानरूपी सूर्य प्रकाशित रहता है। यह सूर्य कभी अस्त नहीं होता न उदय होता है, अतएव सन्ध्याकाल ही नहीं आता। फिर सन्ध्या-वन्दन किस समय करें?'

मृता मोहमयी माता जातो ज्ञानमय: सुत:।
पातकं सूतकं नित्यं कथं सन्ध्यामुपास्महे।।

'मोह रूपी माता मर गई है और ज्ञानरूपी पुत्र पैदा हुआ है। इसलिए सदा सूतक और पातक लगे रहते हैं ऐसी दशा में सन्ध्या-वन्दन किस प्रकार करें?'

आरम्भिक अवस्था में सहायक साधनों की आवश्यकता अनिवार्य है। जैसे शुरू के विद्यार्थी के लिए पुस्तक, कापी, पट्टी, खड़िया आदि नितान्त आवश्यक हैं इनके बिना शिक्षा आगे नहीं बढ़ सकती। परन्तु कालान्तर में वही बालक जब प्रोफेसर हो जाता है तो फिर खड़िया पट्टी आदि की जरूरत नहीं होती। वह शिक्षा उसे पूर्ण रूप से हृदयंगम हो जाती है। इसी प्रकार आत्म-साधन में सफलता प्राप्त करने वाले सन्यासी को भी शिखा सूत्र की आवश्यकता नहीं होती।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book