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आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री और यज्ञोपवीत

गायत्री और यज्ञोपवीत

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9695
आईएसबीएन :9781613013410

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यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।


ब्रह्मसूत्र का प्रयोजन


यज्ञोपवीत का वास्तविक प्रयोजन मन पर शुभ संस्कार जमाना है। आत्मा को ब्रह्मपरायण करने के लिए अनेक प्रकार के, साधन व्रत अनुष्ठान विभिन्न धर्मों में बताये गये हैं। हिन्दू-धर्म के ही प्रधान साधनों में एक यज्ञोपवीत है। ब्रह्मसूत्र धारण करके लोग ब्रह्म तत्व में परायण हों, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ब्रह्मसूत्र है। यदि उससे प्रेरणा ग्रहण न की जाए तो वह गले में डोरा बाँधने से अधिक कुछ नहीं। उपनिषदों में ज्ञानरूपी उपवीत धारण करने पर अधिक जोर दिया गया है। सूत्र धारण का उद्देश्य भी ब्रह्मपरायणता में प्रवृत्ति करना है। यह प्रवृत्ति ही आत्म-लाभ कराती है।

येन सर्वंमिदं प्रोक्तं सूत्रे  मणि गणा  इव।
तत्सूत्रं धारयेद्योगी योगतत्वञ्च दर्शितम्।।

बहिः सूत्रं  त्जेद्विद्वान योगमुत्तममास्थित:।
ब्रह्मभावमयंसूत्रं   धारयेद्य:   स  चेतन:।।

धारणात्त सूत्रस्य नोच्छिष्टो ना शुचिर्भवेत्।
सूत्रमन्तर्गतं येषां ज्ञान  यज्ञोपवीतिनाम्।।

ते वै सूत्रविदो लोके ते च यज्ञोपवीतिनः।
ज्ञानमेव परं निष्ठा  पवित्रं  ज्ञानमुत्तमम्।।

अग्निरिव शिखानान्या यस्य ज्ञानमयी शिखा।
स  शिखीत्युच्यते   विद्वानितरे  केशधारिण:।।

- ब्रह्मोपनिषद्


अर्थात्- जिस ब्रह्मरूपी सूत्र में यह सब विश्व, मणियों के समान पिरोया हुआ है, उस सूत्र-यज्ञोपवीत को तत्त्वदर्शियों को धारण करना चाहिए। बाहरी सूत्र की ओर अधिक ध्यान न देकर जो ब्रह्मभाव रूपी सूत्र को धारण करता है, वह चैतन्य है। उस ज्ञानरूपी आध्यात्मिक यज्ञोपवीत को धारण करना चाहिए जो कभी अपवित्र नहीं होता। जिनके ज्ञानरूपी शिखा है, और जो निष्ठारूपी यज्ञोपवीत धारी हैं वे ही सच्चे शिखाधारी और सच्चे यज्ञोपवीतधारी हैं तप के समान दूसरी शिखा नहीं है। जिसके ज्ञानमयी शिखा है उसे ही विद्वान् लोग शिखाधारी कहते हैं अन्य तो बाल रखने वाले मात्र हैं।

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