आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री और यज्ञोपवीत गायत्री और यज्ञोपवीतश्रीराम शर्मा आचार्य
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यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।
अयोग्य को अनधिकार
''स्त्री और शूद्रों को वेद ज्ञान तथा ब्रह्म सूत्र नहीं लेना चाहिए'' इस-अभिमत का तात्पर्य किसी को जन्म-जात कारणों की वजह से ईश्वरीय धर्म मार्ग में प्रवेश करने से रोकना नहीं है, वरन् यह है जिनकी अभिरुचि अध्यात्म मार्ग में नहीं है, जिसकी शिक्षा अभिरुचि तथा मनोभूमि धर्म मार्ग में प्रवृत्त न होकर दूसरी ओर लगी रहती है, वे वेद-मार्ग में दिलचस्पी न ले सकेंगे, उसमें श्रद्धा न कर सकेंगे, समझ न सकेंगे। अधूरा ज्ञान लेकर तो उसके दुरुपयोग की ही अधिक सम्भावना है। शास्त्रकारों ने वेद-मार्ग में प्रवेश होने की शर्त यह रखी है कि- धर्म में विशेष रुचि हो, जिसमें यह रुचि पर्याप्त मात्रा में है, वह द्विज है; जिसमें नहीं है, वह शूद्र है। शूद्र वृत्ति वाले लोगों के लिए उपवीत एक भार है। वे उसका उपहास या तिरस्कार करते हैं। ठीक रीति से धारण न कर सकने योग्य, उसे धारण न करें तो ठीक है।
जिनमें ये दोष न हों वरन् प्रबल धर्म में रुचि हो वे जन्म-जात कारण से धर्म-संस्कारों से नहीं रोके जाने चाहिए ऐसे प्रमाण पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं, जिनसे प्रकट होगा कि शास्त्र स्त्री और शूद्रों को भी उपवीत धारण करने की आज्ञा देता है-
'द्विविधा स्त्रियो ब्रह्म वादिन्य: सद्योवध्वश्च।
तत्र ब्रह्मवादिनीनां उपनयनं अग्नि गन्धनं वेदाध्ययनं स्वगृहे भिक्षावतिश्च।।
वधूनां तूपवतर्थं विवाहे. कधाश्चिदुपनयनं कृत्वा विवाहः कार्य।।
अर्थात् स्त्रियाँ दो प्रकार की हैं- ब्रह्मवादिनी और नववधु। ब्रह्मवादिनियों को उपनयन, अग्निहोत्र, वेदाध्ययन और अपने घर में ही भिक्षा करनी चाहिए। नव-वधुओं को कम-से-कम विवाह समय में तो यज्ञोपवीत अवश्य ही करना चाहिए।
पुरा कल्पे तु नारी मौञ्जिबन्धनमिष्यते।
अध्यापनं च वेदानां सावित्री वचनं तथा।
अर्थात्- पुराने समय में स्त्रियाँ यज्ञोपवीत धारण करती थीं, वेद पढ़ती थीं और गायत्री का जप करती थीं।
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