आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री और यज्ञोपवीत गायत्री और यज्ञोपवीतश्रीराम शर्मा आचार्य
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यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।
5- दिव्य-दृष्टि से देखने का अर्थ है- संसार के दिव्यतत्वों के साथ अपना सम्बन्ध जोड़ना। हर पदार्थ अपने सजातीय पदार्थों को अपनी ओर खींचता है और उन्हीं की ओर खुद खिंचता है। जिनका दृष्टिकोण संसार में अच्छाइयों को देखने समझने और अपनाने का है, वह चारों ओर अच्छे व्यक्तियों को देखते हैं। लोगों के उपकार, भलमनसाहत, सेवा भाव, सहयोग और सत्कार्यों पर ध्यान देने से ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों में बुराइयों की अपेक्षा अच्छाइयाँ अधिक हैं। संसार हमारे साथ अपकार की अपेक्षा उपकार कहीं अधिक कर रहा है। आँखों पर जैसे रंग का चश्मा पहन लिया जाये, वैसे ही रंग की सब वस्तुयें दिखाई पड़ती हैं। जिनकी दृष्टि दूषित है उनके लिए प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक प्राणी बुरा है, पर जो दिव्य-दृष्टि वाले हैं वे प्रभु की इस परम-पुनीत फुलवारी में सर्वत्र आनन्द ही आनन्द बरसता देखते हैं।
6- सद्गुण- अपने में अच्छी आदतें, अच्छी योग्यतायें, अच्छी विशेषतायें धारण करना सद्गुण कहलाता है। विनय, नम्रता, शिष्टाचार, मधुर भाषण, उदार व्यवहार, सेवा-सहयोग, ईमानदारी, परिश्रमशीलता, समय की पाबन्दी, नियमितता, मर्यादित रहना, कर्त्तव्य-परायणता, जागरूकता, प्रसन्न मुख-मुद्रा, धैर्य, साहस, पराक्रम, पुरुषार्थ, आशा, उत्साह वह सब सद्गुण हैं। संगीत, साहित्य, कला, शिल्प, व्यवहार, वक्तृता, व्यवसाय, उद्योग, शिक्षण आदि योग्यतायें होना सद्गुण हैं। इस प्रकार के सद्गुण जिसके पास हैं वह आनन्दमय जीवन बितावेगा, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है।
7- विवेक एक प्रकार का आत्मिक प्रकाश है, जिसके द्वारा सत्य-असत्य की उचित-अनुचित की, आवश्यक-अनावश्यक की, हानि-लाभ की परीक्षा होती। संसार में असंख्यों परस्पर विरोधी मान्यतायें, रिवाजें, विचारधारायें प्रचलित हैं और उनमें से हर एक के पीछे तर्क, कुछ आधार, कुछ उदाहरण तथा कुछ पुस्तकों एवं महापुरुषों के नाम अवश्य सम्बन्धित होते हैं। ऐसी दशा में यह निर्णय करना कठिन होता है कि इन परस्पर विरोधी बातों में क्या ग्राह्य है और क्या अग्राह्य? इस सम्बन्ध में देश, काल, परिस्थिति, उपयोगिता, जनहित आदि बातों को ध्यान में रखते हुए सदबुद्धि से निर्णय कर लिया तो समझिये कि उसने सरलतापूर्वक सुख-शान्ति के लक्ष्य तक पहुँचने की राह पा ली। संसार में अधिकाश कलह, क्लेश, पाप एवं दुःखों का कारण दुर्बुद्धि, भ्रम तथा अज्ञान होता है। विवेकवान् व्यक्ति इन सब उलझनों से अनायास ही बच जाता है।
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