आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री और यज्ञोपवीत गायत्री और यज्ञोपवीतश्रीराम शर्मा आचार्य
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यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।
2- शक्ति संचय की नीति अपनाने वाला दिन-दिन सबल, स्वस्थ, विद्वान्, बुद्धिमान, धनी, सहयोग-सम्पन्न, प्रतिष्ठावान्, बनता जाता है। निर्बलों पर प्रकृति के, बलवानों के तथा दुर्भाग्य के जो आक़मण होते रहते हैं, उनसे वह बचा रहता है और शक्ति-सम्पादन के कारण जीवन के नाना-विधि आनन्दों को स्वयं भोगता एवं अपनी शक्ति द्वारा दुर्बलों की सहायता करके पुण्य का भागी बनता है। अनीति वहीं पनपती है जहाँ शक्ति का सन्तुलन नहीं होता। शक्ति संचय का स्वाभाविक परिणाम है, अनीति का अन्त जो सभी के लिये कल्याणकारी है।
3- श्रेष्ठता का अस्तित्व परिस्थितियों में नहीं विचारों में होता है। जो व्यक्ति साधन-सम्पन्नता से बढ़े-चढ़े हैं, परन्तु लक्ष्य, सिद्धान्त, आदर्श एवं अन्तःकरण की दृष्टि से गिरे हुए हैं, उन्हें निकृष्ट ही कहा जायेगा। ऐसे निकृष्ट आदमी अपनी आत्मा की दृष्टि में, परमात्मा की दृष्टि में और दूसरे सभी विवेकवान् व्यक्तियों की दृष्टि में नीच श्रेणी के ठहरते हैं, अपनी नीचता के दण्ड स्वरूप आत्म-ताड़ना, ईश्वरीय दण्ड और भ्रम के कारण मानसिक अशान्ति में डूबते रहते हैं। इसके विपरीत कोई व्यक्ति भले ही गरीब साधनहीन हो पर उसका आदर्श, सिद्धान्त, उद्देश्य, अन्तःकरण उच्च तथा उदार है तो वह श्रेष्ठ ही कहा जायेगा। यह श्रेष्ठता उसके लिये इतने आनन्द का उद्भव करती रहती है, जो बड़ी-बड़ी सांसारिक सम्पदाओं से भी सम्भव नहीं।
4- निर्मलता का अर्थ है- सौन्दर्य! सौन्दर्य वह वस्तु है, जिसे मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी और कीट-पतंग तक पसन्द करते हैं। यह निश्चय है कि कुरूपता का कारण गन्दगी है। मलिनता जहाँ कहीं भी होगी, वहीं कुरूपता रहेगी और वहाँ से दूर रहने की सबकी इच्छा होगी। शरीर के भीतर मल भरे होंगे तो मनुष्य कमजोर और बीमार रहेगा। इसी कारण कपड़े, घर, भोजन, त्वचा, बाल, प्रयोजनीय पदार्थ आदि में गन्दगी होगी तो वह घृणास्पद, अस्वास्थ्यकर, निकृष्ट एवं निन्दनीय बन जायेगा। मन में, बुद्धि में, अन्तःकरण में मलीनता हो तब तो कहना ही क्या है। इन्सान का स्वरूप हैवान और शैतान से भी बुरा हो जाता है। इन विकृतियों से बचने का एकमात्र उपाय 'सर्वतोमुखी निर्मलता' है। जो भीतर-बाहर सब ओर से है, जिसकी कमाई, विचारधारा, देह, वाणी, पोशाक, झोपड़ी, प्रयोजनीय सामग्री निर्मल है, स्वच्छ है, शुद्ध है, वह सब प्रकार सुन्दर प्रसन्न, प्रफुल्ल, मृदुल एवं सन्तुष्ट दिखाई देगा।
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