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आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री और यज्ञोपवीत

गायत्री और यज्ञोपवीत

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9695
आईएसबीएन :9781613013410

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यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।


गायत्री की मूर्तिमान प्रतिमा यज्ञोपवीत

यज्ञोपवीत को 'ब्रह्मसूत्र' भी कहा जाता है। सूत्र डोरे को भी कहते हैं और उस संक्षिप्त शब्द-रचना का अर्थ बहुत विस्तृत होता है। व्याकरण, दर्शन, धर्म, कर्मकाण्ड आदि के अनेक ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें ग्रन्थकर्त्ताओं ने अपने मन्तव्यों को बहुत ही संक्षिप्त संस्कृत वाक्यों में सन्निहित कर दिया है। उन सूत्रों पर लम्बी वृत्तियाँ, टिप्पणियाँ तथा टीकायें हुई हैं, जिनके द्वारा उन सूत्रों में छिपे अथों का विस्तार होता है। ब्रह्मसूत्र में यदि अक्षर नहीं है, तो भी संकेतों से बहुत कुछ बताया गया है। मूर्तियाँ, चिह्न, चित्र, अवशेष आदि के आधार पर बड़ी-बड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। यद्यपि इनमें अक्षर नहीं होते तो भी बहुत कुछ प्रकट करने में समर्थ हैं। इशारा करने से एक मनोभाव दूसरों पर प्रकट हो जाता है, भले ही उस इशारे में किसी शब्द-लिपि का प्रयोग नहीं किया जाता है। यज्ञोपवीत के बह्मसूत्र यद्यपि वाणी और लिपि से रहित हैं तो भी उनमें एक विशद् व्याख्यान की अभिभावना भरी हुई है। गायत्री को गुरुमन्त्र कहा जाता है। यज्ञोपवीत धारण करते समय जो वेदारम्भ कराया जाता है वह गायत्री से कराया जाता है। प्रत्येक द्विज को गायत्री जानना उसी प्रकार अनिवार्य है, जैसे कि यज्ञोपवीत धारण करना। यह गायत्री यज्ञोपवीत का जोड़ा ऐसा ही है जैसे लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम, राधेश्याम, प्रकृति-ब्रह्म, गौरी-शंकर, नर-मादा का जोड़ा है। दोनों के सम्मिश्रण से ही एक पूर्ण इकाई बनती है। जैसे स्त्री-पुरुष की सम्मिलित व्यवस्था का नाम ही गृहस्थ है, वैसे ही गायत्री-उपवीत का सम्मिलित ही द्विजत्व है। उपवीत सूत्र है तो गायत्री उसकी व्याख्या है। दोनों की आत्मा एक के साथ जुड़ी हुई है।

यज्ञोपवीत में तीन तार हैं गायत्री में तीन चरण हैं। 'तत्सवितुर्वरेण्यं' प्रथम चरण 'भगोंदेवस्य धीमहि द्वितीय चरण और 'धियो यो न: प्रचोदयात् तृतीय चरण है। तीनों तारों का तात्पर्य है, इसमें क्या संदेश निहित है यह बात समझनी हो तो गायत्री के इन तीन चरणों को भली प्रकार जान लेना चाहिए।

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