लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690
आईएसबीएन :9781613014639

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा


'नहीं, यह नहीं हो सकता। तुम पहले पानी लाओ।'

पार्वती ने फिर सिर हिलाकर कहा-‘चलूंगी!’

‘पहले पानी ले आओ।‘

'मैं नहीं जाऊंगी, तुम भाग जाओगे।'

'नहीं, भागूंगा नहीं।'

परन्तु पार्वती इस बात पर विश्वास नहीं कर सकी, इसी से बैठी रही। देवदास ने फिर हुक्म दिया- 'जाओ, कहता हूं।'

'मैं नहीं जा सकती।' क्रोध से देवदास ने पार्वती का केश खींचकर धमकाया। 'जाओ, कहता हूं'

पार्वती चुप रही। फिर उसने उसकी पीठ पर एक घूंसा मारकर कहा-'नहीं जाओगी'

पार्वती ने रोते-रोते कहा-'मैं किसी तरह नहीं जा सकती।'

देवदास एक ओर चला गया। पार्वती भी रोते-रोते सीधी देवदास के पिता के सम्मुख आकर खड़ी हो गयी। मुखोपाध्यायजी पार्वती को बहुत प्यार करते थे। उन्होंने कहा-'पारो, रोती क्यों है।'

'देवदास ने मारा है।'

'वह कहां है?'

'इसी बंसीवाडी में बैठकर तमाखू पी रहे हैं।' एक तो पंडितजी के आगमन से वह क्रोधित होकर बैठे थे, अब यह खबर पाकर वे एकदम आग- बबूला हो गये। कहा-'देवा तमाखू भी पीता है?'

'हां, पीते हैं, बहुत दिनों से पीते हैं। बंसवाडी के बीच में उनका हुक्का छिपाकर रखा हुआ है।' 'इतने दिन तक मुझसे क्यों नहीं कहा?' 'देव दादा मारने को कहते थे।' वास्तव में यह बात सत्य नहीं थी। कह देने से देवदास मार खाता, इसी से उसने यह बात नहीं कही थी। आज वही बात केवल क्रोध के वशीभूत होकर उसने कह दी। इस समय उसकी वयस केवल आठ वर्ष की थी। क्रोध अभी अधिक था; किंतु इसी से उसकी बुद्धि-विवेचना नितांत अल्प नहीं थी। घर जाकर वह बिछौने पर लेट गई और बहुत देर तक रोने-धोने के बाद सो गयी। उस रात को उसने खाना भी नहीं खाया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book