आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
तुमको अब आगे से पाठशाला नहीं जाने देंगे।
'मैं भी पढ़ना नही चाहता।' इसी समय उसका खाद्य-द्रव्य प्राय: समाप्त हो चला। देवदास ने पार्वती के मुख की ओर देखकर कहा- 'संदेश दो।'
'संदेश तो नहीं लायी हूं।'
'तो पानी दो।'
'पानी कहां पाऊंगी?'
देवदास ने विरक्त होकर कहा-'कुछ नहीं है तो आयी क्यों? जाओ, पानी ले आओ।'
उसका रूखा स्वर पार्वती को अच्छा नहीं लगा। उसने कहा 'मैं नहीं जा सकती, तुम जाकर पी आओ।' 'मैं क्या अभी जा सकता हूं?'
'तब क्या यहीं रहोगे?'
'यहीं पर रहूंगा, फिर कहीं चला जाऊंगा।'
पार्वती को यह सब सुनकर बड़ा दुख हुआ। देवदास का यह आपत्य वैराग्य देखकर और बातचीत सुनकर उसकी आँखों में जल भर आया - कहा ‘मैं भी चलूंगी!’
'कहां?' मेरे साथ? भला यह क्या हो सकता है?’
पार्वती ने फिर सिर हिलाकर कहा-'चलूंगी'
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