लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690
आईएसबीएन :9781613014639

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा

10

जब तक देवदास ने पत्र डाक-घर में नहीं छोड़ा था तब तक केवल एक बात सोचते रहे, किंतु पत्र रवाना करने के बाद ही दूसरी बात सोचने लगे। हाथ का ढेला फेंककर वे एकटक उसी ओर देखते रहे। किसी अनिष्ट की आशंका उनके मन में धीरे-धीरे उठने लगी। वे सोचते थे कि यह ढेला उसके सिर पर जाकर कैसा लगेगा? क्या जोर से लगेगा? जिंदा तो बचेगी? उस रात मेरे पांव पर अपना सिर रखकर वह कितनी रोती थी। पोस्ट ऑफिस से मैस लौटते समय रास्ते में पद-पद पर देवदास के मन में यही भाव उठने लगा। यह काम क्या अच्छा नहीं हुआ? और सबसे बड़ी बात देवदास यह सोचते थे कि पार्वती में जब कोई दोष नहीं है, तो फिर माता-पिता क्यों निषेध करते हैं? उम्र बढ़ने के साथ और कलकत्ता-निवास से उन्होंने एक बात यह सीखी थी कि केवल लोगों को दिखाने के लिए कुल-मर्यादा और एक क्षुद्र विचार के ऊपर होकर निरर्थक एक प्राण का नाश करना ठीक नहीं। यदि पार्वती हृदय की ज्वाला को शांत करने के लिए जल में डूब मरे, तो क्या विश्व-पिता के पांव में इस महापातक का एक काला धब्बा नहीं पड़ेगा? मैस में आकर देवदास अपनी चारपाई पर पड़ रहे। आजकल वे एक मैस में रहते थे। कई दिन हुए मामा का घर छोड़ दिया- वहां उन्हें कुछ असुविधाएं होती थीं। जिस कमरे में देवदास रहते हैं, उसी के बगल वाले कमरे में चुन्नीलाल नामक एक युवक आज नौ बरस से निवास करते हैं। उनका यह दीर्घ कलकत्ता-निवास बी. ए. पास करने के लिए हुआ था, किंतु आज तक सफल मनोरथ नहीं हो सके। यही कहकर वे अब यहां पर रहते हैं। चुन्नीलाल अपने दैनिक-कर्म-संध्या-भ्रमण के लिए बाहर निकले हैं। लगभग भोर होने के समय फिर लौटेंगे। बासा के और लोग भी अभी नहीं आये। नौकर दीपक जलाकर चला गया देवदास किवाड़ लगाकर सो रहे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book