आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
किंतु दो दिन बाद पार्वती को निम्नलिखित पत्र आया- 'पार्वती, आज दो दिन से बराबर तुम्हारी बातें सोच रहा हूं। माता-पिता की भी यह इच्छा नहीं है कि हमारा तुम्हारे साथ विवाह हो। तुमको सुखी करने में उन लोगों को ऐसी कठिन वेदना पहुंचानी होगी, जो मुझसे नहीं हो सकती। अतएव उनके विरुद्ध यह काम कर कैसे सकता हूं? तुम्हे संभवत: अब आगे पत्र न लिख सकूंगा, इसलिए इस पत्र में सब बातें खोलकर लिखता हूं। तुम्हारा घराना नीच है। कन्या बेचने और खरीदने वाले घर की लड़की मां किसी भी घर में नहीं ला सकती। फिर घर के पास ही तुम्हारा कुटुंब ठहरा, यह भी उनके मत से ठीक नहीं है। रही बाबू जी की बात, वह तो तुम सभी जानती हो। उस रात की बात सोचकर मुझे बहुत ही दुख होता है। तुम्हारी, जैसी अभिमानिनी लड़की ने वह काम कितनी बड़ी व्यथा पाने पर किया होगा, यह मैं अच्छी तरह जानता हूं।
'और भी एक बात है। तुमको मैंने कभी प्यार किया हो, यह बात मेरे मन में नहीं उठती। आज भी तुम्हारे लिए मेरे हृदय में कुछ अत्यधिक क्लेश नहीं है। केवल इसी का मुझे दुख है कि तुम मेरे लिए कष्ट पा रही हो। मुझे भूल जाने की चेष्टा करो। यही मेरा आंतरिक आशीर्वाद है कि तुम इसमें सफल हो। - देवदास'
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