आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
देवदास ने कहा-'तुम्हारे लौटने के बाद ही मैं मकान पर गया था। एक दासी से, जो तुम्हें बड़ी बहू के पास ले गयी थी, सुनने में आया कि कल अशथझूरी गांव से एक बड़ी सुन्दर स्त्री आयी थी। फिर समझना कितना कठिन था? किन्तु इतना गहना कहां से गढ़ाया?'
चन्द्रमुखी ने कहा-'गढ़ाया नहीं; ये सब गिलट के गहने हैं, इन्हें कलकत्ता में आकर खरीदा है। तुम्हें देखने के लिए मैंने कितना फिजूल खर्च किया है, और कल तो तुम मुझे पहचान भी नहीं सके।'
देवदास ने हंसकर कहा-'एकबारगी नहीं पहचान सका, कोशिश करने पर पहचाना था। कई बार मन में आया कि चन्द्रमुखी को छोड़कर मेरी ऐसी सेवा कौन करेगा?'
मारे हर्ष के चन्द्रमुखी को रोने की इच्छा हुई। कुछ देर तक चुप हो रहने के बाद कहा-'देवदास, मुझसे अब वैसी घृणा करते हो या नहीं?'
देवदास ने जवाब दिया-'नहीं, वरन् प्रेम करता हूं।'
दोपहर में स्नान करने के समय चन्द्रमुखी ने देखा कि देवदास की छाती में एक फलालेन का टुकड़ा बंधा है। भयभीत होकर पूछा-'यह क्या फलालेन क्यों बांधा है?'
देवदास ने कहा-'छाती में एक प्रकार की पीड़ा होती है, तुम तो सुख से हो?'
चन्द्रमुखी ने सिर धुनकर कहा-'सर्वनाश करना चाहते हो क्या? फेफड़े में पीड़ा है?'
देवदास ने हंसकर कहा- 'चन्द्रमुखी ऐसा ही कुछ है।'
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