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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689
आईएसबीएन :9781613014455

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


'अभी जाता हूँ, लाऊँ?'-कह कर यतींद्र तो तुरंत तैयार हो गया।

'तू तो बस पागल है पूरा!'-कह कर रमा ने व्यग्र हो, जोर से पकड़ कर, उसे अपने पास बैठा लिया और कहा-'कभी ऐसा कर भी मत बैठना, यतीन!'

उसकी छाती से चिपटा होने के कारण, यतींद्र ने बच्चा होते हुए भी उसके हृदय की धड़कन का स्पष्ट अनुभव किया, जिससे वह मारे विस्मय के, विस्फरित नेत्रों से उसकी ओर देखता रह गया। यह उसका पहला अनुभव था। रमा ने उसे यह बता दिया था कि रमेश उसके अपने ही छोटे भैया हैं, और कहा भी-'क्या तू बुला कर नहीं ला सकता उन्हें?' पर जब बुलाने को उद्यत हुआ, तो डर कर इस तरह रोक दिया। आखिर ये उनसे इस तरह डरती क्यों हैं? यतींद्र की समझ में ही नहीं आ रहा था कुछ। तभी मौसी की पुकार सुन कर, रमा ने उसे छोड़ दिया और उठ कर खड़ी हो गई। मौसी ने दरवाजे पर स्वयं आ कर कहा-'अरे, अभी नहाने भी नहीं गई? मैं तो समझ रही थी कि रमा घाट पर नहा रही होगी! आज एकादशी है, फिर भी...इतना दिन चढ़ आया है और अभी तक न नहाई हो और न बालों में तेल ही डाला है! देखो तो जरा अपना मुँह, सूखकर स्याह हो रहा है।'

रमा ने जबरदस्ती की हँसी हँसकर कहा-'अच्छा, तुम चलो, मैं अभी आती हूँ नहाने!'

'जाओगी कब? बाहर वेणी आया है, मछलियों का हिस्सा-बाँट करने की राह जोह रहा है।'

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