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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
पर रमा ने उसे जाने नहीं दिया और वह मुँह लटकाए बैठा रहा। फिर कुछ देर बाद उसने पूछा-'दीदी, इतने दिन तक कहाँ थे वे?'
'परदेश में पढ़ाई कर रहे थे अब तक! जब तुम भी बड़े हो जाओगे, तब तुम्हें भी इस तरह बाहर जा कर रहना पड़ेगा। अच्छा यतींद्र, क्या तुम मुझसे अलग रह सकोगे?' -और उसने प्यार से यतींद्र को एक बार फिर कस कर चिपटा लिया।
यतींद्र बच्चा था तो क्या, उसने रमा के स्वर के कम्पन को अनुभव किया, और बालसुलभ उत्सुकता से रमा की ओर देखता रहा। आज यह पहला ही अवसर था यतींद्र के लिए, जब उसकी दीदी ने उसे इस तरह प्रेम से भींच रखा था। वैसे तो वह पहले भी प्यार करती थी, पर इस तरह का आवेश उसने कभी नहीं देखा था।
'क्या छोटे भइया सारी पढ़ाई पढ़ आए हैं?'
रमा ने शब्द से नहीं, दीर्घ नि:श्वा स से और सिर हिला कर ही उसका उत्तर दे दिया। इस संबंध में सच तो यह था कि वह अनभिज्ञ थी, और सारा गाँव भी नहीं जानता था इसे; पर वह यह अवश्य समझती थी कि जो दूसरों की शिक्षा के संबंध में अभी से इतना जागरूक है कि स्वयं जा कर पढ़ाए, वह स्वयं भी काफी विद्वान होगा ही!
फिर यतींद्र ने इस संबंध में और कोई तर्क नहीं किया। उसने सहसा पूछा -'अच्छा दीदी, हमारे यहाँ क्यों नहीं आते छोटे भैया? बड़े भैया तो रोज ही आते रहते हैं!'
रमा इस प्रश्नआ की चोट से व्यथित हो उठी और उसका समस्त अंतर बिलख उठा। पर अपने को संयत कर मुस्कराते हुए उसने कहा-क्या तू उन्हें बुला कर नहीं ला सकता, अपने यहाँ?'
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