आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
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'यतीन! स्कूल नहीं जाना क्या जो अभी खेल ही रहा है?'
'हमारे स्कूल में आज और कल की छुट्टी है।'
मौसी के कानों में इस सूचना के पड़ते ही उनका मुँह बिचक गया। वह बोली -'जब देखो तब छुट्टी, महीने में पंद्रह दिन तो इसी तरह निकल जाते हैं। चूल्हे में जाए ऐसा स्कूल! तुम हो कि उस पर फिजूल में ही सारा रुपया खर्च कर देती हो। मैं तो चूल्हे में झोंक दूँ ऐसे स्कूल को!' इतना कह कर वे अपने काम से चली गईं।
स्कूल को चूल्हे में झोंकने की बात तो उन्होंने सच कही थी, कि अगर उनकी चलती, तो वे निश्चनय ही ऐसा करतीं। और बातों में चाहे झूठ भी बोल जाएँ, पर ऐसे मौकों पर वे झूठ नहीं कहती थीं।
उनके चले जाने पर रमा ने यतीन को और भी पास घसीट कर, अपने से चिपटा कर पूछा-'आज काहे की छुट्टी है रे यतीन?'
यतींद्र ने उसी अवस्था में रह कर कहा -'नया छप्पर छाया जा रहा है। सफेदी होगी। चार-पाँच कुरसियाँ, मेज, अलमारी, घड़ी आई हैं, बहुत सारी किताबें भी, बड़ी अच्छी-अच्छी तथा नई आनेवाली हैं। तुम चल कर देखो न एक दिन, दीदी!'
रमा को निश्च य हुआ, पूछा -'सच है क्या यह सब?'
'दीदी, मैं सच ही कह रहा हूँ। रमेश बाबू की ही तरफ से तो यह सब कुछ हो रहा है।'
यतीन आगे और भी कुछ कहने को था, पर तभी मौसी वहाँ आ पहुँची। रमा उसे अपनी गोद में उठा कर अपनी कोठरी में ले गई, और उसे प्यार से और भी अपने से चिपटा कर, रमेश की और स्कूल संबंधी अनेक बातें पूछ लीं उससे। उसने यह भी जाना कि रमेश स्वयं आ कर दो घण्टे पढ़ाते हैं। रमा ने मुस्करा कर पूछा-'तुम्हें वे पहचानते हैं भला?'
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