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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689
आईएसबीएन :9781613014455

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


भजुआ को तो मन की मुराद मिल गई, आज्ञा पाते ही अपनी तेल-पिलाई लाठी लेने अंदर लपका। भैरव और भी सिहर कर काँप उठे। उनकी हिम्मत तो बस बातों से ही झगड़ा करने भर की थी और जब भजुआ रमेश की आज्ञा पर चला गया, तब दुर्घटना की चिंता ने उन्हें व्याकुल कर दिया और उन्हें खयाल हो आया कि जो बादल गरजते नहीं, वे बरसते जरूर हैं! वे रमेश के हितैषी जरूर थे, तभी तो सूचना देने आए थे। पर चाहते यही थे कि बातों से ही, चीख-पुकार कर काम बन जाए। लेकिन यहाँ तो बानक ही दूसरा बना जा रहा था। भैरव फौजदारी की साँसत से कोसों दूर भागना चाहते थे। थोड़ी देर बाद, भजुआ तेल से तर मोटी लाठी लेकर अंदर से आया और माथे से लाठी लगा रमेश को प्रणाम कर जाने लगा। तभी भैरव ने एकाएक रोना शुरू कर दिया और रमेश के दोनों हाथ पकड़ कर कहा-'रुक जाओ भज्जू भैया। क्षमा करो भैया रमेश! जान साँसत में पड़ जाएगी। गरीब आदमी ठहरा!'

भजुआ रुक गया था। रमेश ने भैरव से हाथ छुड़ा लिए और दंग हो कर उनकी तरफ देखने लगा। भैरव ने रोते हुए ही कहा-'वेणी बाबू ने कहीं सुन पाया कि मैंने ही इत्तला दी थी, तो बस मेरी खैर नहीं! घर-बार तक उजड़ जाएगा। फिर तो देवी-देवता भी रक्षा नहीं कर सकते मेरी!'

रमेश स्तंभित बैठे रहा। शोर सुन कर सरकार महाशय भी तशरीफ ले लाए। सुन कर वे भी बोले-'भैयाजी, आचार्य का कहना ठीक ही है!'

रमेश ने किसी बात का उत्तर न दिया। हाथ से ही भजुआ को जाने का संकेत कर दिया और स्वयं उठ कर, बिना किसी से कुछ कहे-सुने अंदर चला गया। भैरव के इस अत्यधिक डर ने उसे और भी उत्तेजित कर दिया, जिसके कारण उनका सारा शरीर उत्तेजना से जल रहा था।

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