आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
|
4 पाठकों को प्रिय 80 पाठक हैं |
ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
दीनू सहसा उत्तर न दे कर, थोड़ी देर इधर-उधर कर बोले-'भैया, यहाँ की क्या कहते हो, यहाँ तो तब भी खैर है! मैं आपको मुनिया के मामा का हाल बताऊँ-अभी वहाँ गया था। जा कर सब देखा-सुना। वहाँ कायस्थों और ब्राह्मणों को मिला कर गिनती के बीस घर होंगे, पर इतने में ही चार गुट हैं वहाँ पर! दो-चार विलायती अमड़े भर तोड़ लेने पर ही, हरनाथ विश्वा!स ने अपने सगे भानजे को जेल की हवा खिलवा दी। और यह झगड़े-टण्टे कहाँ नहीं हैं? सभी जगह तो हैं!...मुनिया! हरधान थक गया होगा, उसके हाथ से पोटली ले लो।'
'तो क्या इसको दूर करने का कोई उपाय नहीं है?'
'भैया, यह तो कलजुग है, घोर कलजुग! इन सब बातों का दूर होना असंभव है! पर इतना तो मैं दावे से कह सकता हूँ-क्योंकि सभी तरह के लोगों से मेरा पाला पड़ता है, भिक्षा माँगने में-तुम जैसे नौजवानों में ही दया-धर्म बाकी है, पर इन बुड्ढों में तो नाम को भी नहीं! बस ये तो अवसर पाते ही आदमी को धर दबाते हैं, और फिर मार कर ही दम लेते हैं।' कह कर दीनू ने ऐसा चेहरा बनाया कि उसे देख कर रमेश हँसे बिना न रह सका। मगर दीनू हँसे बिना ही बोले-'यह हँसी में उड़ा देने की बात नहीं है, भैया जी! अब तो आप काफी दूर चले आए, अँधेरे में।'
'आप इसकी चिंता न करें, आप तो कहते चलें...।'
'हर जगह यही हाल है! गोविंद गांगुली ने क्या-क्या पाप किए हैं, यह सब कहने लगूँ, तो बिना प्रायश्चिंत तो मैं भी गंदा हो जाऊँगा। क्षांती ब्राह्मणी ने ठीक ही कहा था। लेकिन गोविंद से डरते सभी हैं। झूठा मामला-मुकदमा गढ़ने में, गवाही देने में अव्वल है, और वेणी बाबू को हरदम उसका सहारा रहता है। तभी कोई उसके खिलाफ कुछ कहने का साहस नहीं करता! उसी का नमदा कसा रहता है सभी पर!'
|