आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
विश्वेदश्वहरी आम तौर पर सबके सामने निकलती नहीं थीं-सो कुछ नहीं कहा जा सकता। वैसे तो गाँव में भी विशेष परदा चलता नहीं, मगर आज उन्हें इस तरह सबके सामने खड़ा देख सबको अत्यंत विस्मय हुआ। जिन्होंने उन्हें कभी देखा नहीं, उनके संबंध में सुना ही था, वे मंत्र-मुग्ध से, विस्फरित नेत्रों से देखते ही रह गए। लोगों की नजर उठते ही वे खंभे की ओट में आ गईं। रमेश उनके पास जा पहुँचा। उन्होंने उसे लक्ष्य कर उच्च-सुस्पष्ट स्वर में कहा -'गांगुली जी से कह दो कि इस तरह धमकी देने की जरूरत नहीं और हालदार जी से कह दो कि सभी को आदरपूर्वक बुलाया गया है। किसी का भी अपमान करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं! जिसे अखरता हो, उन्हें यहाँ शोर मचाने की जरूरत नहीं। कहीं और जा कर चिल्लाएँ और वहीं बैठें!'
सभी के कानों में उनके उच्च-स्पष्ट शब्द पड़ गए थे। रमेश को बात दोहराने की आवश्यकता न रही। और कहना भी पड़ता तो इतनी खूबी के साथ कह भी न पाता। उनसे वहाँ खड़ा भी न रहा गया, क्योंकि ताई जी को फिर से आया देख कर, उनकी आँखों में श्रद्धा के आँसू भर आए थे; जिन्हें छिपाने ने लिए वह जल्दी से एक कोठरी में चले गए और वहाँ जा कर रोने लगे। सवेरे से ही काम में लगे रहने के कारण, उन्हें अब तक ताई जी का आना मालूम न हो सका था और न उन्हें आशा ही थी कि वे आएँगी।
ताई जी की बात सुन कर सभी-जो उठ कर जाने को खड़े हो गए थे-अपनी-अपनी जगह बैठ गए, केवल पराण हालदार ही खड़े रहे। तभी भीड़ में से किसी की आवाज सुन पड़ी -'चाचा, खाने के बाद भी भला कहाँ मिलेंगी सोलह पूड़ियाँ और चार-चार संदेश? बैठ जाओ न!'
पर वे नहीं रुके, बाहर चले गए। गोविंद गांगुली बैठ तो गए, पर उनका चेहरा अंत तक उतरा रहा। और जब पंगत बैठी तब काम करने के बहाने वे पंगत में जीमने नहीं बैठे। मन में सभी समझ रहे थे कि गोविंद यों आसानी से किसी को बख्शनेवाले नहीं हैं!
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