आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
तभी रमेश ने राखाल से, जो किसी काम से बाहर जा रहा था, भैरव आचार्य को खीरमोहन भिजवाने के लिए कहला भेजा।
शाम हो गई है, पर यह ब्राह्मण मंडली खीरमोहन की आशा में पलक-पाँवड़े बिछाए, जीभ से बार-बार होंठ साफ करके बैठी है। राखाल ने लौट कर उत्तर दिया-'आज भण्डार का ताला बंद हो गया है, सो अब नहीं खुलेगा किसी भी चीज के लिए!'
रमेश को कुछ बुरा मालूम हुआ। वह बोला-' कह दो जा कर कि मैं मंगवा रहा हूँ।
रमेश के तेवर में बल देख कर सहसा गोविंद गांगुली ने कहा-'इस भैरव की बुद्धि देखी, तुमने भैया? जैसे सबसे ज्यादा उन्हीं को कलख हो, तभी तो कहता हूँ।'
तभी राखाल ने बीच में ही बात काट कर कहा-'उस घर से आ कर, मालकिन ने भण्डार पर ताला लगा दिया है। उसमें आचार्य जी भला क्या कर सकते हैं?'
गोविंद और धर्मदास दोनों ही विस्मय से दंग रह गए, बोले-'मालकिन कौन?'
रमेश ने भी विस्मयान्वित हो पूछा-'ताई जी आई हैं क्या?'
'जी, आते ही उन्होंने छोटे और बड़े भण्डार की ताली अपने कब्जे में कर, उनमें ताला डाल दिया है।'
रमेश सुन कर विस्मयानंद के मारे अभिभूत हो गया और बिना कुछ कहे अंदर चला गया।
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