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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689
आईएसबीएन :9781613014455

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


दीनू ने एक बार लड़कों की तरफ देखा, फिर रमेश और लड़कों की तरफ देख कर बोले-'मेरे पास धरे हैं संदेश जो तुम्हें दे दूँ?'

लड़कों ने हलवाइयों की तरफ संकेत कर फिर वही बात कही। फिर और भी लड़के-लड़कियाँ जमा हो गए, संदेश माँगते हुए।

रमेश व्यग्र हो बोला-'बच्चे अपने-अपने घरों से तीसरे पहर के निकले हैं, भूखे होंगे! अरे, थाल इधर ले आना जी! क्या नाम तुम्हारा?'

हलवाई के संदेश का थाल लाते ही लड़के बंदरों की तरह से उस पर टूट पड़े और लूट मचा दी। उन्हें खाते देख, दीनू की जुबान पर भी लुआब आ गया और आँखें गीली और तीखी हो गईं। बोले-'मुनिया! अरी बता तो बने कैसे हैं संदेश, या बस खा रही है!'

मुनिया ने खाते-खाते ही संदेश के बढ़िया होने की तारीफ की। पर इससे तो दीनू की लालसा मिटी नहीं। फिर बोले-'बस, तुमको तो मीठा ही चाहिए। अच्छे-बुरे की तुम्हें क्या तमीज? अरे, भाई हलवाई! अभी से कड़ाही उतार दी? गोविंद भैया, अभी तो दिन है न?'

हलवाई ने लापरवाही से उत्तर दिया-'हाँ, हाँ! अभी तो दोपहर है! यह समय तो हो गया, अब भी संध्या-पूजा नहीं कर सकेंगे, तब फिर कब करेंगे?'

हिम्मत करके दीनू बोल ही पड़े-'एक गोविंद भैया को भी दो न, जरा चख कर परख करें तो तुम्हारे कलकतिया हाथ की! नहीं, नहीं! मुझे मत दो, मुझे नहीं चाहिए। नहीं मानते-तो फिर दे दो। आधा ही, आधा काफी है। ओ षष्ठीचरण! पानी ला तो जरा, हाथ तो धो लूँ।'

तभी रमेश ने षष्ठी को पुकार कर, अंदर से तीन-चार तश्तरियाँ लाने को भी कह दिया।

अंदर से पानी के गिलास और तश्तरियाँ आ गईं और पलक झपते ही आधा थाल चट कर दिया। दीनानाथ महाशय मुँह का माल अंदर निगलते हुए, कारीगरों की तारीफ में बोले-'भइए, है कलकत्ते का ही हाथ! मानते हैं भाई धर्मदास!'

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