आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
इन ब्राह्मणों की इतनी ओछी मनोवृत्ति देख, रमेश का उदार हृदय चोट खा कर क्षुब्ध हो उठा। वह अब भी नि:शब्द ही खड़ा था। पर जिनके मुख से ये बातें निकली थीं-वे तो अपनी बातों की उच्चता पर विशेष गर्व का अनुभव कर रहे थे। रमेश को सबसे अधिक ग्लानि उनके उस आचरण पर ही हो रही थी कि जिन्हें वे नीच कह रहे हैं, उन्हीं के समान स्वयं आपस में लड़ बैठे। पर वे तो उस पर तनिक भी सोच नहीं रहे थे। चिकने घड़े पर पानी की तरह उनके लिए बात आई-गई-सी हो गई थी। भैरव की प्रश्न सूचक दृष्टि अपनी ओर लगी देख रमेश ने कहा-'दो सौ धोतियाँ और ठीक कर लीजिए।'
बात को दोहराते हुए गोविंद ने कहा-'बिना इतनों के काम नहीं चलेगा! चलो, मैं भी चल कर हाथ बटाऊँ। तुम अकेले कब तक करोगे?' और बिना राय की प्रतीक्षा किए, कपड़े की ढेरी के पास जा बैठा।
रमेश अंदर जाने को हुए, पर धर्मदास उन्हें एक तरफ बुला कर ले गए और चुपके से उनके कान में कुछ बोले, जिसके उत्तर में रमेश ने भी स्वीकृतिसूचक सिर हिला दिया और अंदर चला गया। गोविंद गांगुली की तेज कनखियों ने कपड़े ठीक करते हुए भी यह देख लिया।
तभी एक और वृद्ध, जो ब्राह्मण ही थे और जिनकी मूँछें ऊपर को ऐंठी हुई थीं 'रमेश भैया, रमेश भैया' कहते हुए वहाँ आ पहुँचे। उनके दो-तीन लड़के-लड़कियाँ भी थीं, जिनमें सबसे बड़ी लड़की के शरीर पर फटी-पुरानी डोरिया की एक लाल धोती थी और लड़कों के बदन पर सिर्फ एक लँगोटी। सबकी आँखें उनकी तरफ उठ गईं। गोविंद ने उनका स्वागत करते हुए कहा -'दीनू भैया! आओ बैठो! हमारा परम सौभाग्य है कि आपकी चरण-रज यहाँ पड़ी। बेचारा लड़का अकेला है। मारे काम के मरा जा रहा है, तभी आप लोगों की...।' तभी धर्मदास ने तिरछी-तीखी नजर से गोविंद की तरफ देखा, जिसका अर्थ समझ, गोविंद ने बात का पहलू बदल कर कहा-'आप लोग भैया इधर आने ही क्यों लगे!'
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