आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
'नहीं दी थी क्या?'
'झूठा दुनिया भर का!'
'तेरा बाप होगा झूठा!'
गोविंद ने अपना टूटा छाता ताना और फौरन खड़े हो कर गरज कर कहा-'ठहर तो साले, अभी बताता हूँ।'
धर्मदास ने भी अपना बाँस का सोटा सीधा किया। पर दूसरे ही क्षण बुरी तरह खाँसने लगे।
रमेश दोनों की बातों से दंग रह गया और लपक कर उनके बीच में आ कर खड़े हो गए। धर्मदास खाँसते-खाँसते बैठ गए और बोले-'साले की बुद्धि तो देखो! मैं साले के नाते बड़ा भाई लगता हूँ।'
गोविंद ने भी छाता नीचा कर लिया और बैठते हुए बोले-'देखो तो भला, यह साला और मेरा बड़ा भाई!'
हलवाइयों ने भी काम बंद कर तमाशा देखना शुरू कर दिया था। दूसरे लोग भी काम छोड़-छोड़, शोर सुन कर जमा हो गए। लड़के भी उनकी लड़ाई मजे से देख रहे थे और उन सबके आगे रमेश आँखें नीची किए, लज्जित-सा, डर कर खड़ा था। ब्राह्मण हो कर, वे लोग इस तरह मामूली-सी बातों पर ओछे लोगों की तरह आपस ही में गाली-गलौज कर रहे थे। भैरव बरामदे में बैठ कपड़े सी रहे थे। और वहीं बैठे-बैठे तमाशा देख रहे थे। वे भी बाद में वहाँ आ कर बोले-'रमेश, करीब चार सौ एक धोतियाँ तह हो चुकी हैं, और धोतियाँ जल्दी चाहिए क्या?'
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