जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
खून का उबाल
सन् १९२१ में, देश भर में ब्रिटिश साम्राज्यशाही के विरुद्ध नव-चेतना की लहर दौड़ गई। भारतवासी विदेशी शासन का जुआ अपने कन्धों से उतार फेंकने के लिए कटिबद्ध हो गए। हिमालय से लेकर कुमारी अन्तरीप तक, नगर-नगर और स्थान-स्थान पर स्वदेशी आंदोलन की आग भड़क उठी। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए, दूकानों पर धरने दिये गए। घरों से विदेशी वस्तुएँ निकाल-निकालकर होलियाँ जलाई गईं।
साम्राज्यवादियों का दमनचक्र चलने लगा। आंदोलनकारियों पर लाठियाँ व गोलियाँ बरसाई गईं। हजारों स्त्री-पुरुष जेलों में बन्द कर दिये गए। जनता ने सरकार के इन कारनामों के विरोध में हड़ताल की, जुलूस निकाले, जलसे हुए, सारा देश राष्ट्रीयता के रंग में रंग गया। घर-घर स्वराज्य का अलख जाग उठा। देश के नेताओं ने विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना भरने के लिए कई स्थानों पर नेशनल स्कूल व कालिज खुलवाये।
पन्द्रह वर्ष के किशोर चन्द्रशेखर ने भी यह सब देखा। उसके हृदय में भी देश को स्वतन्त्र कराने का उत्साह उबल पडा। जहाँ-जहां सत्याग्रह करने के तिए स्वयंसेवक जाते, वह भी वहाँ पहुँच कर उनके कार्य देखता। जनता के साथ नारे लगाकर स्वयंसेवकों का उत्साह बढ़ाता था।
एक स्थान पर चन्द्रशेखर ने देखा पुलिसवाले सत्याग्रहियों को डंडो से पीट रहे हैं, उन्हें पकड़-पकड़ कर घसीटते हैं, तरह-तरह के कष्ट दे रहे हैं। उससे चुप न रहा गया, उसका खून उबल पड़ा। जिस पुलिस अधिकारी की आजा से वह सब अत्याचार हो रहा था, चन्द्रशेखर ने क्रोध में भर-कर उसके माथे पर एक कंकड़ मारा। निशाना अचूक था, पुलिस अधिकारी के माथे से रक्त की धारा बह निकली, उसके कपडे लहू-लुहान हो गए। पुलिस में बड़ी खलबली मच गई। कंकड़ मारने वाले को पकड़ने के लिए खोज की जाने लगी। चन्द्रशेखर उन सबकी आखों में धूल झोंककर साफ निकल भागा। फिर भी पुलिस के सिपाही ने उसे पहचान लिया था।
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