जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
मेधावी छात्र
चौदह वर्ष के किशोर चन्द्रशेखर ने माता-पिता मे अनुरोध किया, ''मैं काशी जाकर रहूंगा, पढ़-लिखकर विद्वान बनूंगा।'' वह अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान था, उनकी आँखों का तारा था। वे उसे एक दिन के लिए भी अपनी दृष्टि से ओझल नहीं करना चाहते थे। उन्होंने किसी शर्त पर भी बच्चे के अनुरोध को न माना और उसे काशी जाने की आज्ञा न मिली।
चन्द्रशेखर अपनी धुन के पक्के थे। जो बात एक बार उनके मन में समा जाती, उसे पूरा करने में वह कोई कसर उठाकर न रखते थे। अंत में माता-पिता की आज्ञा न मिलने पर वह चुपचाप घर से भाग गए और फिर कभी लौटकर नहीं आये।
कभी-कभी यह देखा जाता है कि छोटी से छोटी घटना भी बडी महत्वपूर्ण होती है। वह भविष्य की बड़ी-बड़ी घटनाओं का निर्माण करती है। चन्द्रशेखर का घर से भागना भी केवल उनके जीवन में ही नहीं, वरन् देश के क्रान्तिकारी इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है। माँ की ममता और पिता का स्नेह उनके लिए कोई वन्धन न बन सके। किसी तरह वह काशी पहुंच गये। वहाँ से अपने पिताजी को पत्र लिख दिया, ''आप किसी प्रकार की चिन्ता न करें। मैं पढ़ने के लिए यहाँ आ गया हूं, आपके आशीर्वाद से सब ठीक है।''
काशी बहुत बड़ा तीर्थ होने के अतिरिक्त, पुरातन काल से ही विद्या का भी केन्द्र रहा है। यहाँ कुछ धर्मात्मा धनी पुरुषों ने गरीब विद्यार्थियों के लिए मुफ्त रहने व खाने-पाने का प्रबन्ध कर रखा है। वस्त्रों और उनकी अन्य आवश्यकताओं के लिए उन्हें कुछ रुपया मासिक भी दिया जाता है। यहां पहुँचकर चन्द्रशेखर का भी पूरा-पूरा प्रबन्ध हो गया। उन्होंने मन लगाकर संस्कृत भाषा का अध्ययन करना आरम्भ कर दिया।
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