जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
काकोरी केस
9 अगस्त 1925 का दिन था। बालामऊ जंक्शन पर, मुरादाबाद की ओर से लखनऊ जानेवाली कलकत्ता मेल आकर खडी हुई। तीन आदमी दूसरे दर्जे में चढ़े और सात तीसरे दर्जे के डिब्बे मे जा बैठे। इंजन ने सीटी दी, गाड़ी चल पड़ी।
ज्यों ही कलकत्ता मेल काकोरी स्टेशन के समीप जा पहुंचा, एकाएक किसी ने खतरे की जंजीर खींच दी, मेल रुक गया। बालामऊ से सवार होने वाले दसो आदमी बाहर आ गए। उनके हाथों में भरी हुई पिस्तौले थीं। दो ने जाकर इंजन ड्राइवर और फायरमैन को पकड कर बाँध दिया। एक ने गार्ड की छाती पर पिस्तौल ररवकर चुपचाप खड़े रहने का आदेश दिया। चार आदमियों ने गाड़ी के दोनों ओर घूमकर यात्रियों को बतला दिया, 'कोई अपना सिर भी वाहर न निकाले, नहीं तो गोली मार दी जाएगी। हमें यात्रियों से कुछ नहीं कहना है, हम तो केवल सरकारी खजाना लूटने के लिए आए हैं।'
सभी यात्री अपने-अपने डिब्बों में चुपचाप बैठे रहे। ट्रेन में सरकारी खजाने के सन्दूक बाहर निकाले गये। हथौडों से उनके ताले तोड़कर सब रुपया निकाल लिया और चलते बने।
सरकारी खजाने पर डाका डालने वाले ये लोग और कोई नहीं, रामप्रसाद 'बिस्मिल' और चन्द्रशेखर आजाद थे। शेष उनके साथी अशफाकउल्ला खाँ, मन्मथनाथ गुप्त, बनवारीलाल, शचेन्द्रनाथ वख्शी, राजेन्द्र लाहिड़ी, मुरारीलाल, मुकुन्दीलाल और केशव चक्रवर्ती थे।
आखिर कष्टों के उठाने की भी कोई सीमा होती है। वे लोग आर्थिक कष्टों को उठाते-उठाते घबरा गए थे। दल का काम किसी प्रकार चल ही नहीं पा रहा था। तब उन सबने सरकारी खजाने पर ही डाका डानने की योजना बना डाली।
जिस कलकत्ता मेल में ये लोग बालामऊ से चढ़े थे, उसमें रेलवे के बहुत से स्टेशनों की आय जमा होकर, लखनऊ आया करती थी। उसी आय को उन्होंने लूट लिया।
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