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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

''राजी से कोई देता नहीं, डाका हम डालें नहीं, तो फिर देश-सेवा के लिए रुपया आए कहाँ से? देश का धन, देश के हित में ही खर्च होना चाहिये, न कि इने-गिने लोगों के ऐश आराम में।'' उस व्यक्ति के पास आजाद की बातों का कोई उत्तर न था। आजाद गोली चलाने में बहुत दक्ष थे। उनका निशाना अचूक होता था। एक बार क्रान्तिकारियों का दल सुनसान जंगल में से कहीं जा रहा था। चन्द्रशेखर आजाद भी थे। कुछ लोंगो की इच्छा हुई - मनोरंजन के लिए आजाद की निशानेबाजी देखी जाए। उनमें से एक ने कहा, 'आजाद भैया! हम लोगों को इच्छा है, आज तो आपकी निशानेबाजी देखी जाये।''

''अच्छा, बोलो कहाँ निशाना लगाऊं?'' आजाद ने मुस्कराकर पूछा।

''जहाँ आप ठीक समझें। हमें तो केबल खेल देखने से काम है।'' आजाद कुछ देर इधर-उधर देखकर बोले - ''देखो, लगभग बीस गज की दूरी पर वह वृक्ष खड़ा है। उसकी डाली पर वह छोटा पत्ता लटक रहा है। तनिक ध्यान से देखना, मैं उसी पत्ते में निशाना लगाता हूं।''

सब लोग उस पत्ते की ओर देखने लगे। धाँय की आवाज हुई, आजाद ने गोली चला दी थी। किन्तु पता वहीं लटका रहा, हिला तक नहीं। सभी बोले, ''निशाना नहीं लगा।''

आजाद ने दूसरी गोली चलाई किन्तु व्यर्थ। दूसरी, तीसरी, इस तरह पाँच बार गोली चलाई, पत्ता फिर भी उसी तरह लटका रहा।

यह देखकर और लोग चुप हो गए परन्तु स्वयं आजाद को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोले ''आज तक मेरा निशाना कभी खाली नहीं गया। मैं नहीं कह सकता, आज क्या बात है?''

सब लोगों ने वृक्ष के पास जाकर पत्ते को देखा तो आश्चर्य की सीमा न रही। पत्ते में पाँचों गोलियों ने अलग-अलग छेद कर दिए थे।

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