जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
चाँदनी चौक में
दोपहर का समय था। दिल्ली के प्रसिद्ध बाज़ार चांदनी चौक में, कोतवाली से कुछ दूर, एक जौहरी की दुकान पर एक सुन्दर नवयुवक पहुँचा। उसने दो-एक चीजें देखीं, मोल-भाव किये। बाहर की ओर कुछ इशारा किया, एकाएक आठ-दस नवयुवक वहाँ आ गये। सभी के हाथों में पिस्तौलें थीं। उन्होंने पिस्तौलें दिखाकर दुकान का चौदह हजार रुपया लूट लिया और चलते बने। किसी का भी साहस कुछ कहने का नहीं हुआ।
आज सवेरे ही चन्द्रशेखर आजाद को उनका वह मित्र मिला था, जिसने चार हजार रुपये उधार लेकर दिया था। उसने कहा, '' भाई चन्द्रशेखर ! मुझे वह चार हजार रुपया चाहिये।''
''क्यों अभी तो केवल तीन महीने ही हुए हैं मैंने तो छः महीने का वायदा किया था।''
''यह तो ठीक है, पर रुपया देने वाला नहीं मानता, वह अपना रुपया माँगता है। मैंने सोचा कि आपसे न कहूँ, अगर हो सके तो मैं ही इन्तजाम करके उसे दे दूँ। परन्तु मैं कुछ ऐसी परिस्थिति में पड़ गया हूँ कि इन्तजाम ही नहीं कर कर सका।''
''उस रुपये वाले से कह दो, दो महीने और रुक जाये। ब्याज जितना चाहे उतना ले ले।''
''मैं उससे यह कह चुका हूँ। किन्तु उसने मुझे रुपया ब्याज पर नहीं दिया है। उसे भी जरूरत है इसलिए उसका रुपया अभी लौटाना है।''
''अच्छा। आज शाम को सही।'' यह कहकर आजाद चल दिये। दोपहर को अपने साथियों को लेकर जौहरी की दुकान पर डाका डाल दिया।
शाम को जब वह अपने मित्र को चार हजार रुपये देने गए, तो उसने बड़ा मुंह बनाकर कहा, ''रुपया प्राप्त करने का यह ढंग तो अच्छा नहीं है।'
आजाद ने मुस्कराते हुये उत्तर दिया, ''यह तो ठीक है, किन्तु तुमने कभी यह भी मोचा है कि ये पूंजीपति दूसरों का खून चूस-चूस कर रुपया जमा करते हैं। आखिर यह रुपया आयेगा किस काम?''
''फिर भी तुम्हें डाका तो नहीं डालना चाहिये।''
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