ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक पौधे चमत्कारिक पौधेउमेश पाण्डे
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प्रकृति में हमारे आसपास ऐसे अनेक वृक्ष हैं जो हमारे लिए परम उपयोगी हैं। ये वृक्ष हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहार हैं। इस पुस्तक में कुछ अति सामान्य पौधों के विशिष्ट औषधिक, ज्योतिषीय, ताँत्रिक एवं वास्तु सम्मत सरल प्रयोगों को लिखा जा रहा है।
औषधिक महत्त्व
0 अतिसार में- इसकी छाल क्वाथ अतीस का चूर्ण डालकर पिलाने से पुराना अतिसार बन्द हो जाता है।
0 पेट की कृमि पर- इसकी छाल के क्वाथ में बायविडंग का चूर्ण डालकर पीने से पेट के कृमि नष्ट हो जाते हैं।
0 रक्त विकार में- इसकी छाल का त्रिफला के साथ शीत निर्यास बनाकर पिलाने से खून साफ होकर रक्त विकार मिट जाता है।
0 फोड़े हो जाने पर- जिन जख्मों से बदबूदार पीब निकलता हो उन पर इसके नरम पत्ते को आग पर तपाकर पीसकर लेप करने से बड़ा लाभ होता है।
सप्तपर्ण का ज्योतिषीय महत्त्व
इस वृक्ष में नित्य जलार्पण करने से देव दोष से मुक्ति मिलती है। इसीलिये इस वृक्ष को देववृक्ष भी कहा जाता है।
सप्तपर्ण का तांत्रिक महत्त्व
0 इस वृक्ष का एक नाम शैतान का वृक्ष भी है। जिसके पीछे ये कारण है कि किसी भी व्यक्ति को यदि कोई व्यक्ति परेशान करता हो तो मात्र निम्न यंत्र बनाकर इस वृक्ष के पास खोदकर वह यंत्र मिट्टी में दबा देना चाहिये। सम्बन्धित व्यक्ति का कष्ट दूर होता है। यंत्र कोरे कागज पर काली स्याही से शनिवार के दिन शुभ चौघड़िये में बनावें। यंत्र इस प्रकार है-
0 इस वृक्ष के नीचे बैठकर अध्ययन करने से अथवा किसी समस्या पर विचार करने से परम धनात्मकता दिखाई देती है।
0 शुभ मुहूर्त में निकाली गई इसकी जड़ को विद्यार्थियों को अपने अध्ययन कक्ष में अथवा अपने पास रखने से लाभ (ज्ञान लाभ) होता है।
सप्तपर्ण का वास्तु में महत्त्व
यह वृक्ष घर की सीमा में अशुभ नहीं होता। मुख्यत: इसका पश्चिम- दक्षिण अथवा नैऋत्य में होना शुभ होता है। किन्तु कम क्षेत्रफल वाले घरों में इसे नहीं लगाना चाहिये।
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