ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक पौधे चमत्कारिक पौधेउमेश पाण्डे
|
10 पाठकों को प्रिय 201 पाठक हैं |
प्रकृति में हमारे आसपास ऐसे अनेक वृक्ष हैं जो हमारे लिए परम उपयोगी हैं। ये वृक्ष हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहार हैं। इस पुस्तक में कुछ अति सामान्य पौधों के विशिष्ट औषधिक, ज्योतिषीय, ताँत्रिक एवं वास्तु सम्मत सरल प्रयोगों को लिखा जा रहा है।
छतिवन (सप्तपर्ण)
बिभिन्न भाषाओं में नाम
हिन्दी - छतिवन सवतन, सतोना, छातियान, शैतान का झाड़संस्कृत - सप्तपर्ण, शारद गृहना स्पपत्र, मदगंध, देववृक्ष, कहुपर्ण
बंगाली - छाटीम, छतिमगाछ
गुजराती - सातवशवृक्ष, सप्तपर्ण
मराठी - सातवश सतविन,
कन्नड - एनलेलेहेल, हाले, जंत्रहेल, कोडेल, मुधोल, मुडिहाले
कोंकणी - संतना रूख
मलयालम - एझिलाम्पाला
पंजाबी - सतोना
तमिल - एलिलै पिल्लई
तेलुगु - एडाकुलापाला
अंग्रेजी – Dita Bark, Devil’s tree
लैटिन – Alstonia scholaris
यह एक बड़ी जाति का वृक्ष है। जो भारतवर्ष के दक्षिणी हिस्सों में और सीलोन में बहुत पैदा होता है। इसकी पैदावार विशेषकर सूखे जंगलों में होती है। इसके पत्ते सेमर के पत्तों की तरह होते हैं। इसकी पत्तियाँ 7-7 के समूह में होती हैं इसलिए प्राचीन काल में इसका नाम सप्तपर्ण रखा गया था। इसका दूध कड़ुवा होता है। इसकी छाल भूरी और खुरदरी होती है। इसके पत्ते कटी हुई किनारों के लंबगाले ऊपर की बाजू गहरे हरे और नीचे की बाजू फीके हरे होते हैं। इसके फूल कुछ हरापन लिए हुए सफेद रंग के रहते हैं। इसका फल लंब गोल रहता है और इसमें बीज रहता है। औषधि प्रयोग में इसकी छाल काम में आती है।
यह वनस्पति आमाशय की शक्ति को बढ़ाकर पाचनक्रिया को दुरुस्त करती है। इसलिए जीर्ण ज्वर के साथ होने वाले अजीर्ण में इसकी छाल के चूर्ण को 10 रत्ती की मात्रा में कालीमिर्च और सैंधा नमक के साथ देने से बहुत लाभ होता है। जीर्ण अतिसार और आंव रोग में भी इसका काढ़ा एक मूल्यवान औषधि है। जीर्ण आमवात और संधियों की सूजन में इसकी छाल लेप करने से फायदा होता है।
इसकी छाल के चूर्ण को 2 तोले की मात्रा में लेकर क्वाथ या शीतनिर्यास बनाकर देना चाहिये। छाल के चूर्ण की मात्रा 3 माशे से 6 माशे तक की है। इसके सत्व डिटेनिन की मात्रा 5 रत्ती से 10 रत्ती की है इसके घनसाव की मात्रा 1.5 माशे से 3 माशे तक की हैं।
यह वृक्ष वनस्पति जगत के एपोसायनेसी (Apocynaceae) कुल का सदस्य है।
|