आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
''योग्यता यदि नहीं है, तो मिल जायेगी. प्राप्त कर ली जायेगी। कोई योग्यता ऐसी नहीं है. जो प्राप्त न की जा सके। ज्ञान की लालसा चाहिए। किसी भी योग्यता की पहली शर्त यही है, ज्ञान की लालसा। यह लालसा मनुष्य को चैन से बैठने नहीं देती। इस लालसा के एक ही स्पर्श में प्रचण्ड भूचाल लाने की शक्ति है। यह जिसे एक बार छू लेती है, उसका पीछा जन्म-जन्मान्तर तक नहीं छोड़ती।'' अचानक भयानक आवाज होने लगी। मेरी अन्तर-समाधि टूट गई। आँखें खोलकर मैंने आकाश की ओर देखा। गुरुदेव और दीदी भी आकाश की ओर देख रहे थे। भयानक शोर आकाश से ही तो नीचे गिर रहा था। धरती पर फौज के गुजरने की जो गुर्राहट होती रही थी, वह अचानक रुक गई थी। डरावने सीत्कारों के साथ आकाश से हवाई जहाज पार हो रहे थे। अचानक धरती की तरफ तीव्रतर प्रकाश फैलाने वाले गोले गिरने लगे। क्षण भर पहले जो चराचर जगत अन्धकार में बन्द था, वही क्षण-मात्र में आलोकित होकर पूर्णतया उघड़ गया। धरती पर जो कुछ था, उड़ते हवाई-जहाजों ने सब देख लिया। दूसरे ही क्षण आकाश से ऐसी बम-वर्षा होने लगी, जैसे साक्षात् मौत बरस रही हो। हवाई जहाज बिल्कुल नीचे आकर झपट पड़े। उनका शोर ऐसा था, जैसे वे हमारे मस्तकों के आरपार उड़ान भर रहे हों।
मैंने अपने निकट ही एक तेजस्विता देखी। मेरी आँखें चुँधिया गईं। कान फाड देने वाला धमाका हुआ। अगले ही क्षण मैंने गुरुदेव के भारी शरीर को अपने ऊपर गिरता महसूस किया।
गुरुदेव चिल्ला रहे थे, ''लेट जाओ। दुबक जाओ। बैठो मत। लेट जाओ। अम्बिका! दीया बुझा दो। सुरेश! लेट जाओ सब।''
कुछ क्षण बीते।
मैं गुरुदेव के नीचे दबा हुआ था।
मैंने अपने शरीर पर गर्म खून बहता महसूस किया। खुद के बदन में मुझे कहीं भी पीड़ा नहीं हो रही थी।
तो क्या..........।
क्या यह खून गुरुदेव का है?
अकुलाकर मैंने उनकी पीठ पर हाथ फेरा। मैं चौंका। गुरुदेव की पूरी पीठ फट गई थी। खून के रेले बह रहे थे।
मैं चिल्लाया, ''दीदी! दीदी! ''
''क्या हुआ? '' दीदी ने नजदीक से ही पुकारा।
'गुरुदेव घायल हो गये हैं।' ओह!
अम्बिका दीदी लपककर नजदीक आई।
गुरुदेव ने मुझे ढाल की तरह ढाँक रखा था। किसी तरह मैंने और दीदी ने मिलकर उनका शरीर हटाया। दीदी ने उन्हें अपनी गोद में ले लिया।
गुरुदेव ने मुझे नाम लेकर पुकारा और कहा, ''मेरे नजदीक आ।''
मैं उनके चेहरे पर झुका।
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