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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685
आईएसबीएन :9781613014318

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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

''मैं नहीं जानती, इस विद्या का मूल नाम क्या है। शायद 'कर्ण-धारिणी' नाम रहा हो, क्योंकि इसका साधक दूसरों के मन की जानकारी अपने कर्ण से धारण करता है। इसका एक नाम 'कर्म-धारिणी' भी हो सकता है, क्योंकि इसका साधक इसकी शक्ति से किसी भी प्रकार के कर्म को धारण कर, उसे सम्पन्न कर सकता है।''

''विद्वानों की कृपणता के कारण यह विद्या भ्रष्ट हो गई और घटिया लोगों के हाथों में खेलने लगी। कर्ण-पिशाचिनी के जरिए दूसरों के मन की बात बताकर और उनके भूतकाल की सही चर्चा कर राह-चलते लोगों ने पैसे लूटना शुरू कर दिया। वर्तमान में किसी के मन में क्या घुट रहा है, यह जानना मुश्किल नहीं है। व्यक्ति का पूरा भूतकाल भी उसके चेतन-अवचेतन मन में छिपा होता है। इसीलिए उसके मन पर साधक ने एक बार काबू पाया नहीं कि उसका पूरा भूतकाल साधक की जानकारी में आ जाता है। साधक को ऐसा लगता है, जैसे कोई अज्ञात शक्ति उसके कानों में, सामने के व्यक्ति के बारे में सारी जानकारी दिये जा रही है। इसीलिए यह विद्या कर्ण-पिशाचिनी कहलाने लगी।''

''कर्ण-पिशाचिनी'' की साधना के लिए, पूर्ण श्रद्धा के साथ, सवा लाख मन्त्रों का जाप करना पड़ता है। यह जापसाधक को आत्म-विश्वास से भर देता है। यही आत्म-विश्वास कर्ण-पिशाचिनी को जगाता है। ब्रह्मचर्य और योग की शक्ति भी साधक के आत्म-विश्वास को और पैना करती है। कर्ण-पिशाचिनी के कई मन्त्र प्रचलित हैं, किन्तु प्रमुख तीन हैं। मैं ये तीनों मन्त्र तुम्हें बताऊँगी। उनमें से किसी भी एक का जाप तुम्हें सवा लाख बार करना होगा।'' अम्बिका दीदी ने कहा।

मुझे रोमांच हो रहा था।

मैं पूछे बिना न रह सका, ''लेकिन.,........ व्यक्ति का भविष्य तो उसके मन में छिपा नहीं रहता न! साधक को भविष्य की जानकारी कैसे मिल जाती है?''

वह बोलीं, ''भूतकाल और वर्तमान के आधार पर साधक भविष्य का केवल अनुमान लगाता है। वही सच्चा निकलता है।''

''भविष्य का..... केवल अनुमान?'' मैंने आश्चर्य से पूछा।

''हाँ, केवल अनुमान! भविष्य तो कोई नहीं बता सकता। भविष्य हमेशा अनिश्चित होता है। हाँ, भूतकाल सुनिश्चित होने के कारण उसकी सुनिश्चित जानकारी अवश्य मिल जाती है। वर्तमान भी पता चल जाता है। इन्हीं आधारों पर, किसी के भी व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर, भविष्य की बातें इस प्रकार बताई जा सकती हैं कि वे सच्ची निकलें।''

''मसलन?'' मैंने भौहें उठाई।

''मसलन..... आपका पूरा भूतकाल मैं जानती हूँ। आपकी वर्तमान अभिलाषाओं को भी मैंने जान लिया है। इस पर से मैं कह सकती हूँ कि भविष्य में आप सत्य के रक्षक बनेंगे। ऐसी भविष्ययाणी करके, वास्तव में आपके मन-मस्तिष्क में मैंने एक विचार का बीजारोपण भी कर दिया है। एक दिशा मैंने आपको दे दी है। आप उसी दिशा में बढते जाते हैं। मैं यह भी भविष्यवाणी कर सकती हूँ कि आप बहुत कष्ट पायेंगे, किन्तु अन्त में विजयी होंगे। इसमें भी मैंने कोई चमत्कार नहीं किया, क्योंकि यह तो सामान्य नियम है कि जो सत्य की रक्षा करता है, वह प्रारम्भ में बहुत कष्ट पाता है, किन्तु अन्त में विजयी भी वही होता है।''

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